SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 266
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४७ थारे तो माहोमां दोष देख, हिवे तो थे ढाकसो विशेष। एकला होवण रो डर थाने, मांहोमां दोष राखसो छांने । ४८ जो हिवै थे कहो म्हे न राखां छाने, तो हिवै बात थांरी कुण माने। थे तो बेठा परतीत गमाय, थां री मूरख माने वाय ।। ४९ किण ही चोर रो हुवो उघाड़ो, फिट-फिट हुवो लोक मझारो। घणां लोका जांणे लियो तास, पछे कुण करे तिण रो वेसास।। ५० ज्यूं थांरो पिण हुवो उघाड़ो, दोषीला भेळा काढ्यो जमारो। परगट न कियो थे दोष, थे जन्म गमायो फोक। इम घणा दिनां पछै दोष कहे तिण ने भीखणजी स्वामी निषेध्यो छै। ते माटे टोळा माहै तथा बारै नीकळ्या घणां दिनां पछै दोष न कहणा। दोष रा धणी ने तुरत कहणो। पिण परपूठे ओर आगे न कहिणो। ताळीसा रा लिखत में एहवो कयो-टोळा माहि कदाच कर्म जोगे टोळा बारे पड़े तो टोळा रा साध साधवियां रा अंसमात्र अवर्णवाद बोलण रा त्याग छै। यां री अंसमात्र संका पड़े आसता उतरे ज्यूं बोलण रा त्याग छै। टोळा मां सूं फारने साथे ले जावा रा त्याग छै। उ आवे तो ही ले जावण रा त्याग छै। टोळा माहै ने बारे पिण नीकळ्यां ओगुण बोलण रा त्याग छै। मांहोमां मनफटै ज्यूंबोलण रा त्याग छै। इम पेंताळीसा रा लिखत में कयो। ते भणी सासण री गुणोत्कीर्तन सूप बात करणी। भागहीण हुवे सो उतरती करे, तथा भागहीण सुणे, सुणी आचार्य ने न कहे ते पिण भागहीण। तिण ने तीर्थंकर रो चोर कहणो, हरामखोर कहणो, तीन धिरकार देणी आयरिए आराहेइ, समणे यावि तारिसो। गिहत्था वि णं पूयंति, जेण जाणंति तारिसं।। आयरिए नाराहेइ, समणे यावि तारिसो। गिहत्था वि णं गरहंति, जेण जाणंति तारिसं॥ इति 'दशवैकालिक में कयो ते मर्यादा आज्ञा सुध आराध्यां इहभव परभव सुख कल्याण हुवे। ए हाजरी रची सवत् १९१० जेठ विद ८ वार शुक्र बषतगढ में। १. दसवेआलियं,५/२/४५,४० २४० तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy