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________________ ७ ८ ९ २ ३ ४ तो हि दोष काढै तिण में घणा, बलि झूठा करै विषवाद । ते अपछंदा निरळज नागड़ा, तिण लोप दीधी मरजाद ॥ इसडा अजोग नै अळगो किया, जब ओ काढै दोष अनेक । पिण घणा दिना पछै कहिणो नहीं । च्यारूं तीर्थ नै या सीख तीजा दूहा में इज दीधी । चोथा दूहा में कह्यो–दोष देख्यां ततकाळ कहिणो सो विषवाद बधै नहीं। तथा पाचवा दूहा में को-घणा दिना पछै दोष कहै तिण नै कषाइ, दुष्ट आत्मा रो धणी, आळ नो देणहार कह्यो । तथा छठा दूहा में को- घणा दिनां पछै दोष कहै तिण री बात मानणी नहीं। तथा सातमा दूहा में कह्यो-घणा दिनां पछै दोष कहै, तिण नै अपछंदो कह्यो, निरळज कह्यो, नागड़ो कह्यो, मरजादां नो लोपणहार कह्यो। इत्यादिक अनेक प्रकारै घणा दिनां पछै दोष कहै तिण नै निषेध्यो छै । तथा भीखणजी स्वामी रास जोड्यो तिण में पिण घणा दिनां पछै दोष कहै तिण नै निषेध्यो छै १ ५ बले ओगुण बोलै इण रीतै साधु नै बले विसेसै परगट अति घणां तिण री बात न मानणी एक ॥ चालिया, किण रै संका पड़े नहीं काय । करूं, ते सुणज्यो अथ अठै साध सिखावण री ढाळ भीखणजी स्वामी कधी तिण में कह्यो - दोष देखै तो ततकाळ तिण नै कहिणो । चित्त ल्याय ॥ 'अवगुण सुण-सुण नै समदृष्टि, यांने जाणै धर्म सूं भृष्टि । यांरा बोल्यां री प्रतीत नाणै, झूठ में झूठ बोलता जाणे ॥ घट मांही। सगळा श्रावक सरीखा समदृष्टि साची हुवै दिष्ट, ते यांनै करै खिष्ट' | मांही आब । ते यांनै न्याय सूं देवै जाब, पाड़ै घणा यांरी मूळ न आण संक, यानै देखाळ दै यांरो बंक ॥ थे घणा दोष कहो गुरु मांही, घणा वरसां रा जाणो छो ताही । तो थे पिण साधु किम थाय, जाण जाण रह्या भेळा माय ॥ नहीं छै एक । जो यामें दोष घणा छै अनेक, कदा दोष ते तो केवळ ज्ञानी रह्या देख, पिण थे तो बूडा ले भेख ॥ नाही, अकल जुदी - जुदी थोड़ा में लोकां १. लय- म्हारी सासू रो नाम छै फूळी २. निरुत्तर । १८६ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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