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________________ ढाळ ५ गणी गुण गावै रे गणी गुण गावै रे, तसु विविध प्रकार वारू तोळ बधावै रे तसु श्रमण समापी वर क्षेत्रे विचरावै रे ।गणी०। तसु उचरंग आणी झीणी रहिस धरावै रे ॥ध्रुपदं॥ १ प्रथम विनय गुण विमल मूळगो, परम सुगुरु सुं पेमो रे। असातना टाळे चित ऊजळ, निमळ निभावे नेमोरे। कटुक वचन गुरु सीख दिये पिण, कलुष भव नहि ल्यावै उळट धरी कर जौड आदरै, विमन चित्त नवि थावै।। परिषद मांहि निषेधै तो पिण, क्रोधे ना कंपावै। समचित चिंते मुझ ने सद्गुरु, अमरित प्याला पावै।। स्वारथ विण पूगां पिण सुगुणो, लैं'र वैर नहि ल्यावै। अरज न मान्यां अंस मात्र पिण, अथिरपणे नहि आवै ।। अपर मुनी में अति आदर दै, सतगुरु घणों सरावै। असणादिक वस्त्रादिक आपै, तो पिण अरति न ल्यावै।। ___ सासण-भार-धुरा तिणरे भुज, दिन-दिन अधिक दीपावै। परिषद में गणपति ने गण नां, हरस धरी गुण गावै ।। अविनीतां री संगत टाळे, तसु मुंह नांहि लगावै। सुविनीतां सूं अति हित राखै, गणपति चित अनुभावै।। अंस मात्र पिण बात उतरती, न सुणै नाहि सुणावै। कदाच को प्रतनीक कह्यां, गणपति ने तुरत जणावै।। जिलो भुजंग सरीखो जाणी, ए महा रोग मिटावै। आप तणों रागी पिण न करै, प्रभुता ते मुनि पावै।। १० वारू विनय करी सद्गुरु नें, रूडी रीत रिझावै। इकचित आंण अखंड आराधै, ते गण में सोभावै।। १. लय-हींडे हालो रे। २. प्रेम। ३. प्रतिकूलता वर्तन करने वाला। शिक्षा री चोपी : ढा० ५: ८३
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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