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________________ ॥ श्री शाश्वत-जिन-स्तुति ।। ऋषभचन्द्रानन वन्दन कीजे, वारिपेण दुःख वारे जी, वर्द्धमान जिनवर वली प्रणमो, शम्धत नाम ए चारे जी। भरतादिक क्षेत्रे मली होवे, चार नाम चित्त धारे जी, तेणे चारे ए शाश्वत जिनवर, नमीये नित्य सवारे जी ॥ अर्व अधो तिर्खा लोके थई, कोडि पन्नरसें जाणो जी, ऊपर कोडी बेतालीस प्रणमो, अडवन लख मन आणो जी। छत्रीश सहस एंशी ते ऊपरे, विम्ब तणो परिमाणो जी, असंख्यात व्यंतर ज्योतिषीमां, प्रणमुं ते सुविहाणो जी ॥2॥ रायपसेणि जीवाभिगने,भगवती सूत्रे भाखी जी, गंबद्धीप पन्नत्ति ठाणांगे, विवरीने घणुं दाखी जी। वली अशाश्वती ज्ञाताकल्पमां, व्यवहार प्रमुखे आखी जी, ते जिन प्रतिमा लोपे पापी, जिहां बहु सूत्र छ साखी जी ॥3॥ ए जिन पूजाथी आराधक, ईशान इन्द्र कहाया जी, तेम सूरियाम बहु सुरवर, देवी तणा समुदाया जी । नंदीश्वर अढाई महोत्सव, करे अति हर्ष भराया जी, जिन उत्तम कल्याणक दिवसे, पाविजय नमे पाया जी ॥4॥ पाताले यानि यिन्यानि, यानि यिन्यानिभूतले स्वर्गेऽपियानिविम्यानि, तानि वन्दे निरन्तरम्।।1।। 1941
SR No.006152
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay, Ratnasenvijay
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2004
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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