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________________ परिशिष्टम ३७७ धातवः भाषार्थः धातवः भाषार्थः वृष (वरणे)-स्वीकार करना । अश (भोजने)-खाना। धून (कम्पने)-कॅपाना। मुष (स्तेये)-चुराना। ग्रह (उपादाने)-लेना। ज्ञा (अवबोधने) जानना। स० ६६३ वृङ् (सम्भक्तो)-सेवा करना। कुष (निष्कर्षे)-निकालना। इति क्रयादयः॥६॥ चुरादिगणस्थधातुपाठः सू०६६४ सू० ६६७ चुर (स्तेये)-चुराना । गण (सङख्याने)-गिनना। सू० ६६५ कथ (वाक्यप्रबन्धे)-कहना। इति चुरादयः॥१०॥ अथ एयन्तप्रक्रिया सू० ७०० सू०७०३ भावयति-होने के लिये प्रेरणा करता है। घटयति-चेष्टा करवाता है । . सू०७०२ ज्ञपयति-जताता है। स्थापयति-ठहराता है, रखता है। इति ण्यन्तप्रक्रिया। अथ सनन्तप्रक्रिया स० ७०६ स०७०६ पिपठिषति-पढ़ना चाहता है। चिकीर्षति-करना चाहता है। सू० ७०७ स०७१० जिघत्सति-खाना चाहता है। बुभूषति-होना चाहता है। अथ यङन्तप्रक्रिया सू० ७१२ । होता है। बोभूयते-बार बार या अधिक होता है । सू० ७२७ स० ७१४ वाव्रज्यते-टेढ़ा चलता है। | नरीनृत्यते-बार बार वा अधिक नाचता है। सू. ७१६ जरीगृह्मते-बार बार व अधिक ग्रहण वरीवृत्यते-बार बार वा अधिक विद्यमानं | करता है।
SR No.006148
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishvanath Shastri, Nigamanand Shastri, Lakshminarayan Shastri
PublisherMotilal Banrassidas Pvt Ltd
Publication Year1981
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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