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________________ लघुसिद्धान्तकौमुद्याम् धातुरूपम् भाषार्थः | धातुरूपम् भाषार्थः अन्वेति-पीछे आता है, या सम्बद्ध होता है। प्राप्ल-व्याप्तौअपैति-दूर होता है। प्राप्नोति-प्राप्त करता है। डुधाञ्-धारणपोषणयो:- व्याप्नोति-फैलता है। दधाति-धारण करता है। समाप्नोति-समाप्त करता है। 'संदधाति-मेल करता है। क्षिप-प्रेरणेविदधाति-करता है। क्षिपति-फेंकता है। परिधत्ते-पहनता है। संक्षिपति-छोटा करता है। (अ) पिदधाति-ढकता है। उत्क्षिपति-ऊँचा फेंकता है। निदधाति-रखता है। आक्षिपति-दोष देता है। अवधत्त-ध्यान देता है। अवक्षिपति-नीचे फेंकता है। अभिदधाति बोलता है। दिश-अतिसर्जने (दाने) पद-गतौ दिशति-देता है। पद्यते-जाता है। उपदिशति-उपदेश देता है। प्रपद्यते-प्राप्त करता है या भजता है। संदिशति-सन्देश कहता है। उत्पद्यते-पैदा होता है। रुधिर-आवरणेविपद्यते-दुःखी होता है। रुणद्धि-रोकता है। उपपद्यते-योग्य होता है। अनुरुण द्धि-अनुरोध(सिफारिश) करता है। मन ज्ञाने विरुणद्धि-विरोध करता है। मन्यते-मानता है। डुकृञ्-करणेअवमन्यते-अनादर करता है। करोति-करता है। अनुमन्यते-सलाह देता है। आविष्करोति- प्रकट करता है। सम्मन्यते-सम्मान करता है। अनुकरोति-नकल करता है। . चिञ् चयने अलंकरोति-भूषण पहनता है। चिनोति-चुनता है। प्रतिकरोति--प्रतीकार करता है। उपचिनोति-बढ़ाता है। अधिकरोति-अधिकार करता है। सञ्चिनोति-इकट्ठा करता है। उपकरोति-उपकार करता है। अपचिनोति-घटता है। निराकरोति-हटाता है। १-विपूर्वो धा करोत्यर्थे झमिपूर्वस्तु भाषणे । मेलने चापि संपूर्चा निपूर्वा स्थापने मतः॥ .
SR No.006148
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishvanath Shastri, Nigamanand Shastri, Lakshminarayan Shastri
PublisherMotilal Banrassidas Pvt Ltd
Publication Year1981
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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