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________________ उपदेश-प्रासाद भाग १ ३७१ राजलक्षण संहिता कर सभा के अंदर वैसे व्याख्या की जिससे कि सगर लक्षणों से प्रकृष्ट हो और मधुपिंग अपकृष्ट । उससे सर्व राजा आदि से हँसा जाता हुआ मधुपिंग लज्जा से बाहर निकला । सगर कन्या के द्वारा वरा गया । क्रोध से तप कर मधुपिंग महाकाल असुर हुआ । तृतीय पिष्पलाद भी उन दोनों से मिला । उसका वृत्तांत इस प्रकार से हैं I — लोगों में प्रसिद्ध सुलसा और सुभद्रा नामक दो परिव्राजिकाएँ थी । उन दोनों में सुलसा विशेषतया विदुषी थी । जो मुझे वाद में जीतेगा, मैं उसका शिष्य बनूँगा, इस प्रकार से पटह से उद्घोषणा करनेवाले याज्ञवल्क्य परिव्राजक को वाद में जीतकर स्व शिष्य किया । क्रम से उसके अति परिचय से सुलसा को गर्भ हुआ । उसे जानकर सुभद्रा ने निष्ठुरता से उसे उपालंभ दिया और रहस्य में रखा । जन्म को प्राप्त हुए पुत्र को पिष्पल के नीचे छोड़कर वें दोनों चले गये । प्रातः सुभद्रा ने वहाँ पुत्र को देखा । भूखे उसने स्वयं ही मुख में गिरे हुए पिष्पल फल का आस्वादन किया था, इसलिए उसका पिष्पलाद नाम कर सुभद्रा ने उसे बड़ाकर पढ़ाया । सुभद्रा के पास उसने स्वजन्म का वृत्तांत सुना । माता-पिता के ऊपर प्रद्वेष को वहन करते हुए उस अनार्य ने उनके वध के लिए अनार्य वेद कीये । उसने उनमें इस प्रकार से प्ररूपणा की कि - अश्व आदि शान्ति के लिए और स्वर्ग की प्राप्ति के लिए राजा पशु, घोड़े, हाथी, मनुष्य आदि से यज्ञ करें। तब महाकाल ने सोचा कि इन दोनों के वचन से राजादि यज्ञ में हिंसा करेंगें तो मरकर नरक में जायेंगें और इस प्रकार सगर आदि राजाओं से मेरा वैर निर्यातन होगा । उसने कहा कि- तुम दोनों यज्ञ में हिंसा का प्रवर्त्तन कराओ, मैं सर्वत्र सान्निध्य करूँगा । असुर ने सर्वत्र लोंगों को रोगी कीये । जहाँ-जहाँ वें दोनों हिंसात्मक यज्ञ करातें, वहाँ-वहाँ वह असुर रोगों का उपशमन करता और यज्ञ में मारे हुए पशु आदि -
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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