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________________ उपदेश-प्रासाद भाग १ २७३ I और वैमानिक में उत्पन्न होकर बारहवाँ अमम नामक तीर्थंकर होगा, इस प्रकार से श्रीकृष्ण भव-पार को प्राप्त करेगा । रोचक गुण भी श्रेणिक आदि को तीर्थंकर आदि पद दायकपने से प्रसिद्ध हैं । तीनों भुवन में जिसके गुणों को देव - मानव गा रहें हैं, वह श्रीकृष्ण श्रीजैन - शासन में तीन प्रकार से भक्त हुआ था । इस प्रकार से संवत्सर के दिन परिमित उपदेश-संग्रह नामक उपदेश - प्रासाद की वृत्ति में चतुर्थ स्तंभ में अठ्ठावनवाँ व्याख्यान संपूर्ण हुआ । - उनसठवाँ व्याख्यान - गुरु अब कारक गुण की व्याख्या की जाती हैजिस तरह से प्रवचन से सुना गया है, वैसे ही को और सर्व तप-व्रत आदि को करना चाहिए और वैसे सेवन करने से वह कारक माना गया हैं । के वाक्य इस विषय में यह काकजंघ - कोकास का उदाहरण हैंसोपारक में विक्रमधन राजा था और उस नगर में ही रथकारों में अग्रणी सोमिल रहता था, उसे देवल नामक पुत्र था । ब्राह्मण से उत्पन्न हुआ उसी रथकार की दासी का कोकास नामक पुत्र था । वह रथकार अपने पुत्र को बड़े आक्षेप से प्रति दिन कलाओं को सीखाता था । क्योंकि माता-पिताओं के द्वारा मारा गया पुत्र, गुरु द्वारा शिक्षित किया गया शिष्य और हथोड़े से मारा हुआ स्वर्ण लोगों में अलंकार के रूप में होतें हैं । परंतु उसे कोई भी कला प्रकट नहीं हो रही थी । दासपने से -
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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