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________________ उपदेश-प्रासाद - भाग १ २६२ सत्तावनवा व्याख्यान अब निर्वाण नामक पंचम स्थान का निरूपण किया जाता बंध हेतुओं के अभाव में घाति कर्मों के क्षय से केवलज्ञान के उत्पन्न होने पर, शेष कर्मों के क्षय से मोक्ष होता हैं । तीनों भुवन में सुर, असुर और राजाओं को जो सुख हैं, मोक्ष के सुख-संपदा से उस. सुख का स्वाद अनन्त भाग में भी नहीं हैं । निर्वाण पद को अनंत सुख से संपूर्ण, अक्षय और प्रवाह से अनादि-अनंत इस प्रकार से विश्व के जाननेवालों ने कहा हैं। अब यह छट्ठा मोक्षोपाय नामक स्थान हैं। शास्त्र में ज्ञान आदि तीनों ही मोक्ष के उपाय प्रकाशित कीये गये हैं । इस प्रकार से सम्यक्त्व-रत्न के छटे स्थान का चिन्तन करे । इस विषय में प्रभास गणधर का उदाहरण है राजगृह नगर में बल नामक ब्राह्मण रहता था और उसकी अतिभद्रा नामकी पत्नी थी । उन दोनों को प्रभास नामक पुत्र हुआ था। वह वेद, सांख्य, मीमांसा, अक्षपाद, योगाचार आदि शास्त्रों का ज्ञाता होने से अहंकार के पूरण से स्व-आत्मा के बिना सर्व जगत्को मूर्ख के समान मान रहा था । इस ओर यज्ञ के समय में समूहित हुए ब्राह्मणों के मध्य में इन्द्रभूति आदि जो-जो महावीर स्वामी के समीप में गये थे, वे-वें सिंह को देखकर के हिंसक प्राणियों के समान निज-निज मान को छोड़कर प्रभु-चरण रूपी मानस-सरोवर में हंसत्व को प्राप्त हुए । लोगों के मुख से उस वार्ता को सुनकर प्रभास ने सोचा कि-निश्चय से इस रूप से स्व-धाम से ईश्वर ही हमको पवित्र करने के लिए आये जान पड़ रहे हैं । अन्यथा ऐसी शक्ति न हो । इसलिए मैं उसके
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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