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________________ उपदेश-प्रासाद - भाग १ १४६ सूरिजी को ज्ञापन किया । श्रीसूरि ने संदेश दिया-किस प्रकार से दो बार आने का क्लेश किया जाय ? सातवें दिन के होने पर बिल्ली के मुख से इस पुत्र का मरण होगा । उस समय सांत्वना देने आयेंगे । मंत्री ने भी राजा से कहा । उसे सुनकर राजा ने सभी बिल्लीओं को नगर से बाहर निकाल दी। सातवें दिन के होने पर दूध पीलाने के लिए धाय-माता द्वारशाखा के आगे बैठी हुई थी। इस ओर अकस्माद् ही द्वार की चटखनी बालक के सिर के ऊपर गिर पड़ी और वह मरण प्राप्त हुआ। उससे राजा ने वराहमिहिर का तिरस्कार किया । राजा ने गुरु भद्रबाहु से पूछाआपने इसकी आयु को कैसे जाना ? बिल्ली के मुख से मरण नहीं हुआ हैं, वह क्यों ? गुरु ने कहा- चटखनी के मुख में उसका रूप हैं हमने पुत्र जन्म के समय में पूर्व के आम्नाय से आयु का निर्णय किया था । इसने पुत्र-जन्म के अनंतर दासी के द्वारा ऊँचे पाद-पीठ के ऊपर दोनों पैरों को रखकर घटिका-ताडन करने के पश्चात् जाना । उससे वराह खेदित होकर पुस्तकों को जल में डालने लगा, गुरु ने निषेध किया कि- सर्वज्ञ के द्वारा कहने से शास्त्रशुद्ध ही हैं। क्योंकि ___मंत्र से रहित अक्षर नहीं हैं, औषध से रहित मूल नहीं हैं, नाथ से रहित पृथिवी नहीं हैं, निश्चय से आम्नाय दुर्लभ हैं। अब एक बार राजा ने सूरि और ब्राह्मण दोनों से पूछा किआज क्या होगा? वराह ने कहा- आज पश्चात् प्रहर में अमुक स्थान में सहसा ही मेघ के बरसने पर मंडल के मध्य में बावन पल मित मत्स्य गिरेगा । सूरिने कहा- इक्यावन पल मित, उस मंडल से बाहर और पूर्व दिशा में । संध्या के समय गुरु के द्वारा कहे हुए स्थान में गिरा । उससे राजा ने जिन-धर्म का स्वीकार किया । वराह अपमान से तापसी दीक्षा को लेकर और अज्ञान कष्ट कर व्यंतर हुआ । द्वेषवान्
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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