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________________ १०६ उपदेश-प्रासाद - भाग १ सर्व-विषय है । यह ही बुद्ध-वचन अथवा सांख्य-वचन सत्य हैंयह देश-विषय हैं । यह विशेषार्थ है कि दोनों प्रकार से भी सम्यक्त्व के दोषों का वर्जन करना चाहिए । __इस विषय में मैं महानिशीथ सूत्र के अनुसार से सुमतिनागिल के प्रबन्ध को कहता हूँ। ___मगध देश में कुशस्थलपुर में जीव-अजीव आदि तत्त्वों को जाननेवालें सुमति और नागिल नामक दो धनाढ्य भाई रहते थे । अन्य दिन किसी कर्म से उन दोनों के निर्धनत्व को प्राप्त होने पर परस्पर सोचा कि- हम दोनों धन के अभाव में देशांतर चलते हैं। वहाँ से शुभ दिन होने पर प्रयाण किया। ____ एक बार मार्ग में प्रयाण करते हुए उन दोनों ने एक श्रावक के साथ जाते हुए पाँच साधुओं को देखा । उनको सुसार्थ जानकर उन दोनों ने उनके साथ में गमन किया। एक बार उनकी चेष्टा से और भाषण से उनके कुशीलत्वको चित्त में धारण कर नागिल ने सुमति से कहा कि- इनके साथ में हम दोनों का गमन करना योग्य नहीं है । क्योंकि श्रीनेमि-जिन के मुख से सूत्र सुना था, जैसे कि- इस प्रकार से अनगार रूप से होते है और वें कुशील है । उनको दृष्टि से भी देखना नहीं कल्पता हैं । इसलिए इन कुशीलों को छोड़कर हम दोनों आगे चलतें हैं। तब सुमति वक्र-दृष्टि से कहने लगा- यें साधु गुणवालें दीखायी दे रहे है, इसलिए इनके साथ में आलाप-गमन आदि योग्य ही है । तब नागिलने कहा-मैं मन से भी साधुओं के दोष को ग्रहण नही करता हूँ, किंतु मैंने भगवान् तीर्थंकर के समीप से ऐसा अवधारण किया था कि कुशील अदर्शनीय होते हैं । तब सुमति ने कहा कि- जैसे तुम निर्बुद्धिशाली हो, वैसा ही वह तीर्थंकर भी है,
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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