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________________ उत्तर : वैसे तो स्थानक बनाना, साधर्मी भक्ति करना,प्रवचन के लिये जाना-सभी में हिंसा से लाभ ज्यादा होने के कारण उसका निषेध नहीं है, तो मूर्ति-मंदिर और पूजामें भी लाभ ज्यादा है यह तो हम पहले ही सिध्द कर चुके है, फिर उसका निषेध कैसे होगा? और यदि मूर्ति पूजा में पाप होता तो जैन शासनमें पापके प्रायश्चित्त के लिये जो विस्तृत शास्त्रछेदग्रन्थ है, उसमें परमात्मा की मूर्ति बनानेका, मंदिर बनानेका, पूजा करनेका प्रायश्चित्त नहीं बताया है, क्योंकि धर्मका कोई प्रायश्चित्त होता ही नहीं। ___ करुणा से भीगे हृदय से हम यह कहना चाहते हैं कि 'यदि आप मूर्तिपूजा नहीं करना चाहते तो भी, मूर्तिपूजामें पाप है ऐसा उत्सूत्र भाषण करके, आपकी आत्माका अनंत संसार बढाने का जबरदस्त पाप कभी न करें।' प्रश्न : यह कहा जाता है कि परमात्मा के समयमें मूर्तिपूजा नहीं थी परंतु बादमें शास्त्रोंमें जोड दी गयी। उत्तर : यदि ऐसा ही होता तो मूल आगमों में मूर्तिपूजा का पाठ कैसे होते ? देवलोककी प्रतिमाएँ शाश्वत है। तो परमात्मा के समयमें भी मूर्ति और पूजा थी यह स्पष्ट है। आजसे करीब ८६००० वर्ष पूर्व द्रौपदीने जिनप्रतिमा की पूजा की थी ऐसा पाठ ज्ञाताधर्मकथा में है। परमात्मा महावीर देव के समयमें ही हुए गौतम बुध्द, राजगृही नगरीमें श्री सुपार्श्वनाथ भगवान के तीर्थमें ठहरे थे ऐसा बौध्दग्रन्थ महावग्ग १-२२-२३ में बताया है। कल्पसूत्रमें सिध्दार्थ राजाने जिनपूजा की थी ऐसा पाठ है। कलिंग में हाथी गुफामें महाराजा खारवेल के शिलालेखमें जिनप्रतिमाका स्पष्ट उल्लेख है। जिसका समय वीर प्रभुके बाद दूसरी सदी का है। वह मूर्ति नंदराजा मगध देशमें ले गये थे और महाराजा खारवेलने पुनः कलिंगमें प्रतिष्ठा करवाई थी। इससे उस समयमें भी मंदिर -मूर्ति-पूजा थे, यह स्पष्ट है। यदि मूर्तिपूजा शास्त्रविरुध्द होती तो उस वक्त विद्यमान १४ पूर्वधर आदि आचार्य भगवंतने उसका जबरदस्त विरोध किया होता। उसके बाद भी हजारों विद्वान् आचार्य भगवंत हुएँ है, जिनके शास्त्रवचनोंके आधार पर ही आज शासन टिका हुआ है।
SR No.006135
Book TitleKya Jinpuja Karna Paap Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhayshekharsuri
PublisherSambhavnath Jain Yuvak Mandal
Publication Year
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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