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________________ एक भक्तने परमात्माके नामका जाप शुरु किया । ५-७ मिनट मन उसमें एकाग्र रहा। बादमें जाप चालू होते हुए भी मन भटकने लगा। उसी वक्त यदि उसे अलग प्रकारकी भक्तिमें जोड दिया जाये- जैसे कि जलपूजा -तो वापस मन परमात्मामें स्थिर हो जायेगा। अब थोडी देरमें वापस मन भटकने लगा तो वापस दूसरे प्रकारकी पूजा-चंदनपूजामें जोड देने पर स्थिर हो जायेगा। इस तरह लंबे काल तक मनको प्रभुमें तल्लीन रखने के लिये तरह-तरह की पूजा, तरह-तरह की साधना आवश्यक है। प्रश्न : फिर भी, तरह तरह की पूजा से सभीका चित्त एकाग्र होगा ही, ऐसा कोई नियम नहीं है। उत्तर : वैसे तो सामायिक करने से भी समताकी प्राप्ति सभी को होगी ऐसा कोई नियम नहीं है। फिर भी सामायिक छोडने कि बात तो कोई नहीं करता। तो पूजा भी छोडनी नहीं ही चाहिए। प्रश्न : मान लिया की पुष्पपूजा आदि से शुभ भावों की उत्पत्ति होने के कारण वह लाभ करनेवाली है। किन्तु उसके लिये दो-चार फूलों से पूजा पर्याप्त है। सैंकडो हजारो फूलो की हिंसा की क्या जरुरत है ? वैसे भी धर्म में हिंसा होती हो तो भी जयणा का पालन तो आवश्यक बताया ही है न ? और जयणा का अर्थ यही है कि कम से कम हिंसा करना। उत्तर : साधर्मी की भक्ति रोटी-दाल से हो सकती है फिर मिठाई क्यों बनातें है ? एक मिठाई से हो सकती है फिर दो-तीन मिठाई क्यों बनातें हैं ? जयणा तो साधर्मी भक्तिमें भी होनी चाहिए न? वास्तविकता यह है कि जहाँ पर शुभ भावों की उत्पत्ति का लाभ अधिक है, वह हिंसा दोषरुप नहीं है । यदि दो-चार फूलों से भक्तिभाव उमडते है, तो सैकडोहजारो फूलो से और अधिक शुभ भाव उत्पन्न होंगे तो वह हिंसा दोषरुप नहीं ही बनेगी। नहीं तो फिर एक संतको वंदन करने से गुरुवंदन हो गया। अब दुसरे संतको वंदन नहीं करना चाहिए क्योंकि उसमें गमनागमनमें हिंसा होनेवाली है, ऐसा भी मानना पडेगा। सामग्री कम करनी यह जयणा नहीं, किन्तु विवेक रखना यह जयणा है। साधर्मी
SR No.006135
Book TitleKya Jinpuja Karna Paap Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhayshekharsuri
PublisherSambhavnath Jain Yuvak Mandal
Publication Year
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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