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________________ '......... धार्मिक प्रयोजनों के लिए हिंसा करना यह दुर्लभ बोधि का कारण है। धर्म के लिए हिंसा करने वालासम्यक्त्व प्राप्ति से दूर चला आता है। .......' धर्म के नाम पर, गुरु के नाम पर या देव के नाम पर अंधाधुंध हिंसा करने का कोई विधान जिन शासन में नहीं है। यहाँ तो अहिंसा, संयम और तप की महिमा है। ....... समीक्षा :पीतलियाजीअंधाधुन्ध हिंसा करने का विरोध करते हैं, यानी सोच-समझकर धर्म के नाते मर्यादित हिंसा भी क्या परमीशन दे रहे हैं? मूल बात यह है कि जिसमें आत्म-कल्याण नहीं होऐसा उपदेश देनासाधुको कल्पताहीनहीं है। उनको तो आत्म-कल्याण की साधना-सामायिक, पौमहा, सँवर,शास्त्रस्वाध्याय काहीउपदेश देना चाहिए। फिर भी जो स्थानकवासी संत, स्थानक निर्माण, गुरु मन्दिर निर्माण, शास्त्र छपाई, संघ भोजन आदि हिंसामय कार्यों का उपदेश देते हैं। वे स्थानकवासी संत बांठिया जीके लेख के अनुसारशठ हैं, मायाचारी हैं, भेषधारी हैं, वेसभी मिथ्या दृष्टि हैं, अयोग्य हैं, गुरु कहलाने के योग्य नहीं हैं। (पृ. 2, 149) सम्यग्दर्शन अविश्वसनीय सम्यग्दर्शन पत्रिका में बहुत कुछ असत्य एवं परस्पर विरोधी बातें लिखी हैं। हमारे पढ़ने में तो सिर्फ पांच-छ: पत्रिका ही आयी हैं, किन्तु इससे ही पता लगता है कि यह पत्रिका भोले लोगों के धन को तथा समय को बर्बाद कर रहा है और अज्ञान तथा मिथ्यात्व का प्रचार कर रही है। 'सम्यग्दर्शन' पत्रिका और उसके सम्पादक नेमिचन्दजी बांठिया दोनों ही असत्यभाषी तथा अविश्वसीय हैं। (17)
SR No.006133
Book TitleKya Dharm Me Himsa Doshavah Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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