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________________ ခု ၃ ခု कृतज्ञता गुरुवाणी-३ संसार में भी बड़ों को कृतज्ञ भाव से छोटो को संभालना चाहिए और छोटो को भी विनय के द्वारा बड़ों का मान करना चाहिए। भर्ता का उपकार हमारे ऊपर माँ-बाप के अनंत उपकार हैं। उसका ऋण किस प्रकार चुकाया जाए इस पर हम वर्णन कर चुके हैं। अब भर्ता के उपकार और उसका प्रत्युपकार किस प्रकार किया जाए यह देखते हैं। भर्ता अर्थात् पति इतना मात्र अर्थ करने का नहीं है। किन्तु भर्ता अर्थात् भरण-पोषण करने वाला। जब हम किसी संकट में हो, तब जो हमारी सहायता करता है, वही हमारा भर्ता होता है। विषम परिस्थिति में किसी ने हमको धन दिया अथवा दिलवाया अथवा सच्ची सलाह दी, आश्वासन दिया और वह विषम परिस्थिति दूर हो गई। ऐसा तो अनेक स्थानों पर बनता है। अकस्मात् कोई बड़े नुकसान की सम्भावना बन जाती है, समाज में मान-सम्मान होने के कारण, लोगों में मुहँ दिखाना भी भारी पड़ जाता हो, ऐसी विषम स्थिति खड़ी हो जाए तब कोई पड़ोसी या मित्र सच्ची सलाह के द्वारा अथवा थोड़ी सी सहायता के द्वारा उसको बचा लेता है। हमारा समय बदल जाने पर हम करोड़पति बन गए और जिसने विषम परिस्थिति के समय हमारा सहयोग दिया उसका भी समय बदल गया हो, वह किसी दुःख में आ पड़ा हो, उसकी स्थिति बहुत विकट हो गई हो, तब शास्त्रकार कहते हैं कि हम करोड़ रुपया देकर के भी उसके उपकार का बदला नहीं चुका सकते। उसने भले ही २००-५०० रुपये ही दिये हों किन्तु उस समय उसने नि:स्वार्थ भाव से दिए थे और आज हम उसके बदले में उसको करोड़ रुपया भी देते हैं, तो वह उपकार का बदला ही कहा जाएगा। नि:स्वार्थ भाव से किया गया काम ही ऊँचाई पर रहता है। अरे! तुम यदि कदाचित् करोड़ रुपये न भी दे सको लेकिन उसकी विकट परिस्थिति में सहायक तो अवश्य बन सकते हो....! गौतमस्वामी पूछते हैं - भगवन् ! इस भर्ता का बदला कब चुकाया जा सकता है? भगवान् कहते हैं - हे गौतम ! यदि वह व्यक्ति
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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