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________________ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः . श्री तारक - गुरुदेवाय नमः ॥ (सम्पादकीय) गुणात्मक धर्म के आग्रही पूज्य गुरुदेव का चातुर्मास विक्रम संवत् २०४१ में समीग्राम में हुआ। उस समय पूज्य श्री ने श्री शान्तिचन्द्रसूरि विरचित (आज के श्रावक को सच्चा श्रावक बना सके ऐसे) धर्मरत्नप्रकरण पर सुन्दर और सरल शैली में प्रवचन दिये थे । इन प्रवचनों को अक्षरदेह देने का काम इस पुस्तक में किया गया है। इस पुस्तक के प्रथम भाग का विमोचन गत चातुर्मास में जैन सोसायटी अहमदाबाद में हुआ था । उसमें श्रावक धर्म का अधिकारी कौन बन सकता है? उसके चार गुणों का वर्णन किया गया था । इस पुस्तक के दूसरे भाग में दूसरे छः गुणों का वर्णन अक्रूर, पापभीरु, कृतज्ञ, दाक्षिण्य, लज्जालु और दयालु तथा पर्युषण के व्याख्यान का आलेखन किया गया है। प्रथम भाग का प्रकाशन बहुत ही लोकप्रिय बना और अनेक लोगों ने उसे पढ़ा भी। लोगों का दूसरे भाग के लिए भी अत्यधिक आग्रह रहा, इसी कारण दूसरे भाग का संपादन करने में मुझे प्रोत्साहन मिला। पूज्य गुरुदेव के व्याख्यान में पूज्य श्री की शक्ति और सच्चाई का प्रामाणिक दस्तावेज होता है। श्रावकों में रही हुई श्रद्धा का प्रतीक है । हमारा जीवन एक केलिडोस्कोप के समान है जिसमें अनेक आकृतियों का समावेश है। तनिक भी आड़ी-तिरछी या परिवर्तन होते ही वे आकृतियाँ बदल जाती है। एक बार चली गई डिजाईनें दुबारा नहीं आ सकती। इस पुस्तक का पठन-पाठन श्रावकों की जीवन-दिशा को बदलेगा तभी सार्थक होगा । आज के समय में कथित वैज्ञानिक युग में जब नीति की चारों ओर से सफाई हो रही है तब यह पुस्तक धर्म की सच्ची समझ देने में मार्गदर्शक बनेगी । समी के चातुर्मास के समय मैंने व्याख्यान की जो नोट बुकें बनाई थीं उसमें से पहली नोट बुक के व्याख्यान तो इस पुस्तक के प्रथम भाग में आ गये किन्तु दूसरी नोट बुक किसी को पठनार्थ मैंने दी थी। अनेक प्रयत्न करने पर भी वह मुझे वापस नहीं मिली । आदरियाणा के चातुर्मास में पूज्य श्री ने इसी
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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