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________________ गुरुवाणी-२ अक्रूरता के साथ हमारा सम्बन्ध कैसा है? कोट के समान, लम्बे कुर्ते के समान अथवा शाल के समान? हमने धर्म को कोट अथवा लम्बा कुर्ता बना दिया है। घर के बाहर निकलते समय कुर्ता और कोट पहनकर निकलते हैं और जब घर में आते हैं अथवा दुकान पर बैठते हैं तो उसको उतार कर खूटी पर टांग देते हैं। इसी प्रकार हम जब मन्दिर अथवा उपाश्रय आदि धर्मस्थानों में जाते हैं उस समय धर्म का कुर्ता, कोट पहन लेते हैं और घर आकर बैठते हैं तो धर्म के चोले को उतारकर खूटी पर टांग देते हैं यह सत्य है न? दुकान पर बैठकर अनेक ग्राहकों को शीशे में उतार देते हो। अनेक ग्राहकों को खड्ढे में उतार देते हो, ऐसे उलटे-सीधे कार्य करते हुए मनुष्यों को धर्मी कैसे कहा जा सकता है? शास्त्रकार तो कहते हैं कि धर्म के साथ हमारा सम्बन्ध रक्त-मांस जैसा होना चाहिए। घर में आने पर क्या खून को निकाल कर बोतल में भर देते हैं? चौवीस ही घण्टे जिस प्रकार रक्त-मांस हमारे साथ रहता है उसी प्रकार धर्म भी रक्त-मांस के समान हमारे जीवन में एक रूप होना चाहिए। दुनिया के प्रत्येक क्षेत्र में किसी भी प्रकार का कार्य करना हो तो हममें योग्यता होनी ही चाहिए। अरे! एक भिखारी को भी रोटी का टुकड़ा प्राप्त करने के लिए मीठे-मीठे वचन बोलने पड़ते है। वही भिखारी आपके पास आकर जबरदस्ती से भीख मांगे तो आप उसे देंगे क्या? कितनी ही आजीजी करने पर वह भिखारी एक रोटी का टुकड़ा प्राप्त करता है। वाणी में मधुर वचन बोलने की योग्यता न हो तो उसे जीवन में कभी भी भीख नहीं मिल सकती। तब फिर धर्म जैसे महादुर्लभ रत्न को प्राप्त करने के लिए योग्यता तो चाहिए ही! अक्रूरता .... शास्त्रकार धर्म योग्य श्रावक के गुणों का वर्णन कर रहे हैं। उसमें से चार गुणों का वर्णन हम पूर्व में कर चुके हैं धर्म के योग्य श्रावक का
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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