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________________ सकलतीर्थ वंदना ममता का सर्वथा त्याग करनेवाले इन साधु महात्माओं का अपना कोई मकान न होने के कारण, इन्हें अणगार-अगार रहित, बिना घर के कहते हैं। मोक्ष नगर में सुख पूर्वक पहुँचाए ऐसे संयम रूपी रथ के १८००० अंग होते हैं। इन अंगों को अच्छी तरह से समझकर यदि संयम का पालन कर सकें तो यह रथ शीघ्र ही मोक्ष में पहुंचा सकता है। सुविशुद्ध संयम का पालन करने के लिए साधु-महात्मा इन अठारह हज़ार शील के (संयम के) अंगों का दृढ़ता से पालन करते हैं। कभी किसी कारण से यदि उनमें से एक भी अंग में स्खलन हो तो प्रायश्चित्त द्वारा उसे शुद्ध बनाते हैं। पाँच महाव्रत के मेरूभार को वे निरंतर वहन करते हैं। 12पाँच समिति तथा तीन गुप्ति का श्रेष्ठ प्रकार से पालन करते हैं। ज्ञानाचार आदि पाँच आचार का स्वयं तो अच्छी तरह आचरण करते ही हैं साथ-हीसाथ अपने आश्रित अनेक साधकों को भी इन आचारों के पालन में सहायक बनते हैं। तप के बिना कर्मनिर्जरा संभव नहीं है, ऐसा विश्वास होने से वे अनशन आदि छः प्रकार के बाह्य तप में और प्रायश्चित्त आदि छ: प्रकार के अभ्यंतर तप में13 सतत उद्यम करते रहते हैं। क्षमा, नम्रता, गंभीरता आदि अनेक गुणरत्नों की माला को अंगीकार करते हैं। गुणरत्न के भंडार, इन साधु महात्माओं को प्रातःकाल में उठते ही नमस्कार करना चाहिए । उनके चरणों में झुककर उनकी साधना के प्रति अहोभाव व्यक्त करना चाहिए । 11. अट्ठारह हज़ार शीलांगों का ज्ञान अड्ढाईज्जेसु सूत्र में से मिल सकता है । 12. समिति-गुप्ति और पंचाचार की विशेष जानकारी के लिए सुत्रसंवेदना भाग-१, पंचिदिय सूत्र देखें। 13. तपविषयक जानकारी के लिए नाणंमि सूत्र संवेदना-३ देखें।
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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