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________________ ३२२ सूत्र संवेदना-५ 'गणधर भगवंत के जीव, परमार्फत् कुमारपाल महाराज की तरह ऐसा भव्य जिनालय और ऐसी प्रतिमा मैं बना सकूँ यह सम्भव नहीं है और उनके जैसी श्रुतोपासना करने की भी मेरी शक्ति नहीं है, तो भी भावपूर्ण हृदय से उनको वंदन करता हूँ और ऐसी भक्ति और शक्ति मुझ में प्रगट हो, ऐसी भावना करता हूँ ।” अंतरीक्ष: महाराष्ट्र के शीरपुर गाँव के किनारे स्थित इस तीर्थ में श्याम वर्णवाले अर्धपद्मासनस्थ श्री पार्श्वनाथ भगवान की १०७ से.मी. ऊँची अति प्राचीन प्रतिमा बिराजमान है। राजा रावण के बहनोई पाताल लोक के राजा खरदूषण एक बार इस प्रदेश के ऊपर से विमान द्वारा विचरण कर रहे थे। दोपहर के समय जब जिनेश्वर देव की पूजा और भोजन का समय हुआ तब वे इस प्रदेश में उतरे। राजा खरदूषण के सेवक, माली और सुमाली पूजा करने के लिए प्रतिमा लाना भूल गये थे। इसलिए पूजा के लिए उन्होंने वहीं बालू और गोबर से प्रतिमा बनाई और पूजा करने के बाद, लौटते समय उसे नज़दीक के जलकुंड में विसर्जित कर दी। दिव्य प्रभाव से वह प्रतिमा अखंड और मज़बूत बन गई। प्रतिमा के प्रभाव से सरोवर का पानी भी अखूट और निर्मल हो गया। एक बार इस कुंड के पानी का उपयोग करने से ऐलिचलपुर के (बींगलपुर के) श्रीपाल राजा का कोढ़ रोग दूर हुआ। इस आश्चर्यकारक घटना से श्रीपाल राजा को लगा कि, 'इस सरोवर का कुछ प्रभाव है।' आराधना करने से अधिष्ठायक देव ने रानी को स्वप्न में बताया कि इस कुंड में भाविजिन श्री पार्श्वनाथ भगवान की मूर्ति है। आप उस प्रतिमा को
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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