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________________ २९६ सूत्र संवेदना-५ पश्चिम में १६ विजय होती है। उसके मध्य में सीता तथा सीतोदा नदियाँ बहती हैं। जिनके उत्तर और दक्षिण में ८-८ विजय होती है। ये सब विजय एक वक्षस्कार पर्वत अथवा एक नदी से अलग होते हैं। ८ विजय के ७ आंतरे पड़ते हैं। उसमें एक आंतर में वक्षस्कार पर्वत और दूसरे आंतरे में नदी होती है। इस तरह ८ विजय के साथ ४ वक्षस्कार पर्वत और ३ आंतर नदी होती है। अतः कुल ३२ विजय (४४४) १६ वक्षस्कार पर्वत और (४४३) १२ आंतरनदी प्राप्त होती हैं। हर एक वक्षस्कार पर्वत के ऊपर और हर एक आंतर नदी में एक-एक चैत्य है। (१४) भरतक्षेत्र की तरह महाविदेह क्षेत्र के हर एक विजय में भी २-२ नदियाँ होती हैं। उन दोनों नदियों के कुंड के मध्य में ११ चैत्य और एक विजय के मध्य में स्थित दीर्घ वैताढ्य पर्वत के शिखर के ऊपर १ चैत्य होता है। ऐसे एक विजय में कुल ३ चैत्य होते हैं। इस प्रकार ३२ विजयों के (३२४३) ९६, वक्षस्कार पर्वत के १६ और आंतरनदियों के १२ ऐसे कुल मिलाकर महाविदेह क्षेत्र में नीचे बताए गए कोष्टक के हिसाब से १२४ चैत्य होते हैं। इन १२४ चैत्यों में हर एक में १२० शाश्वती प्रतिमाएँ होती हैं। इस प्रकार महाविदेह क्षेत्र में कुल १४८८० शाश्वत प्रतिमाएँ हैं। स्थान शाश्वत चैत्यों की संख्या | १३. १६ वक्षस्कार पर्वत पर १६ चैत्य | १९२० प्रतिमाजी • १२ आंतर नदी के द्रह में १२ चैत्य | १४४० प्रतिमाजी १४. ३२ विजयों के वैताढ्य पर्वत पर | ३२ चैत्य | ३८४० प्रतिमाजी • ३२ विजय में नदी के कुंडों में |६४ चैत्य ७६८० प्रतिमाजी कुल | १२४ चैत्य| १४८८० प्रतिमाजी
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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