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________________ सकलतीर्थ वंदना २७९ २७९ अग्यार-बारमे त्रणशें सार, नव ग्रैवेयके त्रणशें अढार, पांच अनुत्तर सर्वे मली, लाख चोराशी अधिकां वली ॥४॥ सहस सत्ताणुं त्रेवीश सार, जिनवर भवनतणो अधिकार, लांबा सो जोजन विस्तार, पचास ऊँचा बहोंतेर धार ।।५।। एकसो ऐंशी बिंब प्रमाण, सभा-सहित एक चैत्ये जाण, सो कोड बावन कोड संभाल, लाख चोराणुंसहस चौंआल ।।६।। सात से ऊपर साठ विशाल, सवि बिंब प्रणमुंत्रण काल, शब्दार्थ : पहले देवलोक में रहे हुए बत्तीस लाख जिनभवनों को मैं निशदिन वंदन करता हूँ ।।१।। दूसरे देवलोक के अठाईस लाख, तीसरे देवलोक के बारह लाख, चौथे देवलोक के आठ लाख और पाँचवें देवलोक के चार लाख जिनभवनों को मैं वंदन करता हूँ ।।२।। छठे देवलोक के पचास हज़ार, सातवें देवलोक के चालीस हज़ार, आठवें देवलोक के छः हज़ार, नौंवे और दसवें देवलोक के मिलकर चार सौ जिनभवनों को मैं वंदन करता हूँ ।।३।। ग्यारहवें और बारहवें देवलोक के मिलकर तीन सौ, नौ ग्रैवेयक के तीन सौ अठारह तथा पाँचों अनुत्तर विमान के पाँच जिनभवन मिलाकर चौराशी लाख सत्तानवें हज़ार और तेईस (८४,९७,०२३) जिनभवन हैं। उनकी मैं वंदना करता हूँ, उनका अधिकार = वर्णन (शास्त्र में है)। ये जिनभवन सौ योजन लंबे, पचास योजन चौड़े और बहत्तर योजन ऊँचे हैं।।४-५।। ये सभी जिनभवन (चैत्य) में सभासहित १८० जिनबिंब हैं। इस प्रकार सब मिलाकर एक सौ बावन करोड़, चौरानबे लाख,
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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