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________________ भरहेसर-बाहुबली सज्झाय २१९ ४७. विण्हुकुमारो - श्री विष्णुकुमार मुनिसुव्रतस्वामी के समय की यह बात है। पद्मोत्तर राजा और ज्वालादेवी का एक पुत्र महापद्म चक्रवर्ती हुआ और दूसरे पुत्र विष्णुकुमार ने दीक्षा ली। उग्र तप के प्रभाव से उन्हें अपूर्व लब्धियाँ प्राप्त हुई । महापद्म चक्रवर्ती का नमुचि नाम का एक मंत्री जैनशासन का द्वेषी था। पूर्व में अमानत के रूप में रखे हुए वरदान के बल पर उसने एक बार राजा से ७ दिन का राज्य माँगा और तब उसने श्री श्रमण संघ को षट्खंड की सीमा छोड़कर जाने का हुक्म दिया। ऐसी आपत्ति में मुनियों को विष्णुकुमार याद आए, परन्तु वे अष्टापद पर काउस्सग्ग ध्यान में स्थिर थे। एक लब्धिवंत मुनि ने उनके पास जाकर संघ पर आई हुई आपत्ति की सूचना दी । उपशम भाव और स्वभाव की मस्ती में ही मग्न श्री विष्णुकुमार के लिए परभाव में आना अत्यंत कठिन था। पर वे जानते थे कि, संघ की सुरक्षा के अवसर पर एक समर्थ साधु होने के कारण अगर वे यह ज़िम्मेदारी नहीं उठाते तो उन्हें बड़ा प्रायश्चित्त आता। संघ की रक्षा नमुचि को सज़ा दिए बिना संभव नहीं थी और सज़ा काषायिक भाव के बिना नहीं हो सकती थी। विष्णुकुमार मुनि के लिए कषाय करना कठिन था । सामान्य मनुष्य के लिए जैसे आत्मा में स्थिर होना बहुत कठिन होता है, वैसे ज्ञानमग्न योगियों के लिए परभाव में जाना कठिन होता है। फिर भी साधुओं की रक्षा के लिए ध्यान छोड़कर मुनि हस्तिनापुर आए। विष्णुकुमार मुनि ने नमुचि को शांति से समझाने का बहुत प्रयत्न किया, परन्तु उसने एक न सुनी। अंत में उन्होंने नमुचि के पास तीन
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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