SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 319
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९६ . वंदित्तु सूत्र शुभ भावों का प्रादुर्भाव हुआ है वह शिष्य, प्रशिष्य आदि की परंपरा तक स्थित रहे। इस गाथा का उच्चारण करते हुए श्रावक सोचता है कि - 'इस सूत्र के आधार पर इसके प्रत्येक पद के माध्यम से दिन भर में किए हुए पापों की आलोचना, निन्दा, गर्दा एवं जुगुप्सा के लिए मैंने जरूर सुन्दर प्रयत्न किया है। उसके कारण मन, वचन एवं काया से मैं कुछ अंशों तक पाप करने से पीछे भी हटा हूँ। ये सब महिमा अरिहंत परमात्मा की है। उन्होंने पाप से वापस लौटने का यह मार्ग न बताया होता तो मैं प्रयत्न भी कैसे कर सकता था एवं पाप से रूक भी कैसे सकता था ? उपकारी चौबीस जिनेश्वरों के इस उपकारों को याद करता हूँ एवं भावपूर्ण हृदय से उनके चरणों में मस्तक झुकाकर वंदन करता हूँ।' . इस सूत्र को पढ़ने के बाद अंत में इतना संकल्प करें कि सूत्र के पूर्ण अर्थ को स्मरण में लाकर इस प्रकार प्रतिक्रमण करे कि पुनः पुनः पाप का सेवन न हो एवं उत्तरोत्तर विशेष शुद्धि प्राप्त करके हमें शीघ्र ही भाव चारित्र प्राप्त हो। ॥ इति श्री सूत्रसंवेदना-४ का हिन्दी भाषांतर ॥ आसो सुद १०- वि.सं. २०६५ - पूणे
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy