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________________ २८२ वंदित्तु सूत्र इसलिए चौबीस जिनों के मुख से निकले हुए कथा स्वरूप ये शास्त्र वचन दोष दूर करवाने, एवं गुणों को प्रकट करवाने द्वारा कर्मों का एवं भव परंपरा का नाश करवा सकते हैं। चौबीस जिन की कथाओं के ऐसे लाभ को जानता हुआ श्रावक अपने गुरु भगवंत समक्ष प्रार्थना स्वरूप एक शुभ भाव पेश करते हुए कहता है - 'हे भगवंत ! आज तक विषय-कषाय के अधीन होकर मैंने कर्म का बंध एवं भवभ्रमण की वृद्धि करवाने वाली कथाओं में ही अनंतकाल गँवा दिया, तो भी कभी सच्चा सुख या शांति नहीं मिली । इसलिए अब ऐसी कथाओं का त्याग कर, मुझे जिनेश्वर भगवंतों की कथाओं या भगवान के मुख से उच्चरित वाणी सुनने में मेरे दिन व्यतीत करने हैं। हे वीतराग ! मेरी अंतर की भावना है कि मेरे जीवन का हर क्षण आपके नाम का जाप करने में या आपके जीवन को याद करने में बीते और मेरे सब विचार आपके वचनानुसारी बने। मेरी वाणी आपके शास्त्र वचन से सुशोभित बने। हे प्रभु ! मेरी एक क्षण भी तेरे वचन का विस्मरण वाली न बने जिससे मेरा भव भ्रमण बढ़े, मेरे संस्कार बिगड़े एवं मेरी आत्मा कर्मबंध की भागी बने ।' जिज्ञासा : कर्मबंध का मुख्य आधार मन है तो फिर यहाँ कथा को कर्मबंध का कारण क्यों कहा है ? . तृप्ति : मन के भाव बिगाड़ने में 'विकथा' की भूमिका बड़ी महत्त्व की होती है। मनुष्य जैसा सुनता है वैसा सोचता है। एक बार यदि श्रवण सुधर जाए तो विचारों में बहुत परिवर्तन आ जाए। इस दृष्टि से यहां कर्मबंध करने वाली कथाओं का त्याग करके कर्मों एवं कुसंस्कारों के नाश में कारणभूत चौबीस जिन की कथाएँ करने की बात की है। यह गाथा बोलते हुए प्रभु के समक्ष हार्दिक प्रार्थना करनी चाहिए कि - हे नाथ ! आज तक मैंने मात्र कर्मबंध हों वैसी ही कथाएँ करने में जीवन व्यर्थ गँवाया है, परंतु प्रभु ! अब इच्छा है कि कर्मबंध हो ऐसी कथाओं से दूर हो, कर्म का नाश करें वैसी आपकी कथा करके जीवन सफल बनाऊँ । मेरी हार्दिक तमन्ना है कि अब मैं मेरा पूर्ण समय आपकी कथा करने में व्यतीत करूँ। आपके जीवन
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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