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________________ २८० वंदित्तु सूत्र वाली होती है । लम्बे समय से एकत्रित किए हुए कर्म दो प्रकार के होते हैं : पुण्य कर्म एवं पाप कर्म। उसमें पुण्य कर्म मोक्ष मार्ग में सहायक भी बन सकते हैं। इसलिए यहाँ उनके नाश की बात नहीं, परंतु जो कर्म मोक्ष मार्ग में बाधक बनते हैं उन पापकर्मों को नाश करने की शक्ति चौबीस जिनों की कथाओं में निहित है। ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय एवं अंतराय ये चार घाती कर्म मोक्ष मार्ग में बाधक हैं। उनमें मोहनीय कर्म तो महाबाधक है। इसके अलावा वेदनीय, आयुष्य, नाम और गौत्र कर्म अघाती कर्म हैं। ये चार कर्म मोक्षमार्ग में बाधक नहीं हैं, इसलिए उनको पापकर्म नहीं कहते हैं । असातावेदनीयादि जैसे इन कर्मों के अनेक प्रकार हैं जो मोक्ष मार्ग में बाधक नहीं होते, परंतु ये कर्म जीव को दुःख या पीड़ा हो ऐसे संयोग उपस्थित करते हैं। इसलिए व्यवहार में ऐसे कर्मों को भी पापकर्म कहते हैं। साधक को ऐसे पाप कर्मों का अंत करने की इच्छा नहीं होती, पर भगवान के प्रति आदर, उनकी कथादि द्वारा हि ऐसे पाप कर्मों का नाश भी हो जाता है। भव-सय-सहस्स-महणीए' - लाखों भवों का नाश करने वाली । भव का अर्थ होता है संसार और संसार का अर्थ होता है चार गति का परिभ्रमण। इन चार गतियों का परिभ्रमण जीव अनंतकाल से कर रहा है। एक-एक गति में जीव जन्म-मरण आदि अनंत दुःखों को झेल रहा है। तीर्थंकर की कथाएँ या उनकी वाणी दुखमय संसार का नाश करने वाली होती हैं। चउवीस-जिण-विणिग्गय -कहाई वोलंतु मे दिअहा- चौबीस जिनों से निकली हुई कथाओं द्वारा मेरा दिन व्यतीत हो। 1. अत्रोपलक्षणत्वादनन्ता भवा दृष्टव्या: यहां उपलक्षण से अनंत भव जानना। - अर्थ दीपिका 2. चौबीस जिन रूपी बीज में से अंकुर की तरह निकली हुई कथाओं द्वारा । यहाँ (विणिग्गय) अर्थात् (विनिर्गत) शब्द का अर्थ दो प्रकार से हो सकता है: १. चौबीस जिनों के जीवन चरित्र, उनके गुण, उनके नामोच्चार आदि भी उनमें से निकली हुई कथाएँ हैं तथा २. उनके मुख से निकले वचन भी उनसे निकली हुई कथाएँ हैं। इन दोनों को लक्ष्य में रखकर ऊपर का अर्थ किया है। 3. कथया - तन्नामोचारणतद्गुणकीर्तनाचरित्रवर्णनादिकया वचनपद्धत्या - कथा द्वारा अर्थात् उनका नामोच्चारण; उनके गुणों का कीर्तन, उनके चरित्र का वर्णन आदि वचन पद्धति द्वारा।
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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