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________________ सम्यग्दृष्टि का प्रतिक्रमण गाथा-३९ २५९ ३. उत्सर्ग कुशल - सामान्य धर्म नियमों (उत्सर्ग) के बारे में प्रवीण हो। ४. अपवाद कुशल - विशेष धर्म नियमों याने अपवाद के बारे में कुशलता प्राप्त की हो । केवल उत्सर्ग या केवल अपवाद का ही आलंबन न लेकर यथायोग्य दोनों का आलंबन लेता हो । ५. भाव कुशल - हर एक धर्मानुष्ठान विधिवत् करने में कुशल हो। विधि अनुसार करनेवाले अन्य का बहुमान करता हो। सामग्री अनुसार यथाशक्ति विधिपूर्वक धर्मानुष्ठान करता हो। सामग्री न मिले तो भी विधिपूर्वक करने का मनोरथ रखता हो। ६. व्यवहार कुशल - गीतार्थों ने जो आचरण (व्यवहार) किया हो उसे करने में कुशल हो। देश-काल वगैरह की अपेक्षा से उत्सर्ग और अपवाद, गुरूदोष और लघुदोष आदि के ज्ञान में निपुण गीतार्थों द्वारा आचरित व्यवहार को दूषित न करता हो। जिज्ञासा : क्या प्रतिक्रमण जैसी छोटी क्रिया से दिवस, रात्रि, पक्ष, चातुर्मास या वर्ष में किए हुए सर्व पापों का नाश हो सकता है ? तृप्ति : क्रिया बहुत बड़ी या उत्कृष्ट हो परंतु अगर उसमें कर्म नाश के लिए योग्य भाव न जुड़ा हो तो उस क्रिया से कोई फल नहीं मिलता। क्रिया यद्यपि छोटी भी हो परंतु अगर भावना की मात्रा तीव्र हो तो उससे कर्मनाश होता ही है। जिस प्रकार अईमुत्तामुनि ने भगवान की बताई 'ईर्यावहि प्रतिक्रमण' की 3. 'अईमुत्ता' नामक एक नन्हें राजकुमार ने संयम स्वीकार किया । एक बार वह बालमुनि स्थविर मुनिभगवंतों के साथ स्थंडिल भूमि गए थे। वहाँ दूसरे बालकों को पानी में खेलता देखकर बालमुनि भी अपना छोटा पात्र पानी में डालकर खेलने लगे। यह देखकर स्थविर मुनि भगवंतों ने बताया कि ऐसा करने से पानी के असंख्यात जीवों की विराधना हुई है,' यह सुनकर अईमुत्तामुनि को अपने पापों का ख्याल आया। उनको बहुत दुःख हुआ। प्रभु के पास जाकर उन्होंने पाप की आलोचना कर प्रायश्चित्त की प्रार्थना की। प्रायश्चित्त के तौर पर प्रभु ने जो क्रिया करने को कहा उन्होंने वह क्रिया पश्चातापपूर्ण हृदय से खूब भावपूर्वक की। फल स्वरूप उन्होंने उस पाप का नाश तो किया ही परंतु अपने एक पाप के प्रति जुगुप्सा करते-करते उनको सब पापों के प्रति घृणा हुई और ऐसे तिरस्कार के परिणाम से उन्होंने अपने सर्व पापों का भी नाश कर दिया।
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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