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________________ २४४ वंदित्तु सूत्र मुझे दान, शील, तप एवं भाव धर्म का शास्त्र रीति से अच्छी तरह आचरण करना चाहिए। क्योंकि विधिपूर्वक दान करने से परिग्रह संज्ञा के, शील का पालन करने से मैथुन संज्ञा के, तप करने से आहार संज्ञा के और भावधर्म का पालन करने से भय संज्ञा के संस्कार धीरे-धीरे अल्प-अल्पतर होते हुए नष्ट हो सकते हैं।' श्रावक जीवन स्वीकारने के बाद श्रावक यदि संज्ञा को नहीं समझता, इन संज्ञाओं को अल्प करने के लिए दानादि धर्म का आसेवन नहीं करता, परंतु मात्र कीर्ति आदि की कामना से या गतानुगतिक रीति से दानादि करता है तो वे सर्व क्रियाएँ उसके लिए दोष रूप हैं। दिनभर में हुए ऐसे दोषों को याद करके दुःखार्द्र हृदय से श्रावक उनकी निन्दा करता है। . कसाय - चार प्रकार के कषायों के विषय में। . जिस भाव से संसार की वृद्धि हो या प्राणी दुःखी हो उसे कषाय कहते हैं । सामान्य तौर से वह चार प्रकार का माना गया है : क्रोध, मान, माया एवं लोभ । ये चार कषाय संसार रूप वृक्ष के बीज हैं। अनेक प्रकार के दु:खों के कारण हैं। जीवन में अशांति एवं असमाधि को प्रकटाने वाले हैं। सभी प्रकार के क्लेश, संक्लेश एवं झगड़े के उद्भव स्थान हैं। इसलिए श्रावक को हमेशा इन कषायों के स्वरूप को जानकर उनको दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए। इसके लिए नित्य जिनवाणी का श्रवण करना चाहिए। शास्त्र-वचन से हृदय को भावित करना चाहिए एवं देवगुरु की भक्ति द्वारा उनकी कृपा का पात्र बनकर, इन कषायों को अंकुश में लाने का सतत प्रयत्न करना चाहिए। जब तक ये कषाय अंकुश में नहीं आते, तब तक विवेकपूर्वक उनको सुयोग्य स्थान में जोड़ना चाहिए। अगर इस प्रकार कषायों को अंकुश में लाने का यत्न न किया जाए तो श्रावक का जीवन दोष प्रचुर बनता है। इसलिए, दिनभर में कषायों के अधीन होकर जो प्रवृत्ति हुई हो एवं कषायों को निकालने का कोई यत्न न किया हो तो उसकी इस पद से निन्दा करनी है। 4. कष:संसार : तस्यायो लाभो येभ्यस्ते कषायाः क्रोधादयः - अर्थदीपिका कषायों तथा समिति गुप्ति का विशेष स्वरूप जानने के लिए देखें सूत्र संवेदना भाग-१ सूत्र-२'
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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