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________________ २३० वंदित्तु सूत्र शक्ति प्रकट करता है। जब कि इन तीनों का सुयोग न मिले तो गुणसेन-अग्निशर्मा की तरह अनर्थ की परंपरा का सर्जन भी हो सकता है। इसलिए जब सुपात्र का सुयोग मिले, तब उनको शुद्ध आहार वोहराने में कभी भी प्रमाद नहीं करना चाहिए। इस गाथा का उच्चारण करते हुए श्रावक सोचता है कि - 'महापुण्य के उदय बिना गुणवान आत्मा का सुयोग नहीं होता। परम पुण्योदय से मुझे सुपात्र की प्राप्ति हुई है। देव-गुरु की कोई विशेष कृपा से महात्माओं की साधना में अनुकूल बने ऐसी सामग्री भी मुझे मिली है, तो भी प्रमाद से मैं उनका सफल उपयोग नहीं कर सका। सच में वित्त एवं पात्र का सुयोग तो मुझे मिला परंतु योग्य चित्त निष्पन्न करने में मैं लापरवाह रहा । मेरे इस प्रमाद एवं लोभादि कषायों को धिक्कार है। धन्य है धन्ना सार्थवाह एवं शालिभद्र के जीव को जिन्होंने पूर्व भव में भावपूर्ण हृदय से घर पधारे हुए महात्माओं की शुद्ध आहार से भक्ति कर पुण्यानुबंधी पुण्य का उपार्जन किया। ऐसे महापुरुषों के चरणों में मस्तक झुकाकर उनके जैसी भक्ति की शक्ति मुझमें भी प्रकट हो, ऐसी प्रार्थना करता हूँ एवं सुविशुद्ध प्रकार से व्रतपालन में स्थिर रहने का यत्न करता हूँ।' चित्तवृत्ति का संस्करण : बारहवें व्रत का सुंदर पालन करने की इच्छा वाले श्रावक को • संयमी आत्मा का संयोग हो तो सदा मुनि भगवंत को वोहराने के बाद ही भोजन करना चाहिए। • मुनि भगवंत न हों तो उनका आगमन किस तरफ से हो रहा है उसकी जानकारी के लिए चारों दिशाओं का अवलोकन करना चाहिए। मुनि भगवंत दिखाई न दें तो साध्वीजी भगवंत को एवं वे भी न हो तो श्रावक एवं श्राविका की भी अन्नादि से भक्ति करने के बाद भोजन करना चाहिए। • वर्ष में कम से कम एक बार पौषधोपवास के साथ इस व्रत का पालन करना चाहिए। • दान में क्रम, विवेक, सद्भाव, बहुमान का ख्याल रखना चाहिए । • दान देने के बाद उसका पश्चात्ताप नहीं बल्कि अनुमोदना करनी चाहिए।
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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