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________________ वंदित्तु सूत्र मुख्यरूप से साधु-साध्वी भक्ति पात्र होने पर भी गौणरूप से श्रावक-श्राविका भी भक्तिपात्र है । २१८ 'श्रावक - प्रज्ञप्ति” नाम के आगम में बताया गया है कि, 'साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका जब घर आए तब अतिथि का आगमन हुआ ऐसा मानना चाहिए । वे आएँ तब भक्ति सहित खड़ा होना, आसन प्रदान करना, पैर धोना, नमस्कार करना आदि रूप से उनकी पूजा करनी चाहिए और फिर योग्य आहारपानी, वस्त्र, औषध, वसति ( रहने का निवास ) इत्यादि का दान करके अपने वैभव में से इन शुभ क्षेत्रो में वैभव के व्यय करने के तौर में संविभाग करना चाहिए ।' आगम के इस पाठ के अनुसार अतिथि संविभाग व्रत का पालन श्रावक-श्राविका की भक्ति करके भी किया जा सकता है । जिज्ञासा : अतिथिसंविभागव्रत पौषधोपवास करके होता है या उसके बिना भी हो सकता है ? तृप्ति : सामान्यतौर से श्रावक को नित्य अतिथि सत्कार करना चाहिए, परन्तु बारह व्रत में जो अतिथिसंविभाग व्रत बताया है, वह वर्तमान की परंपरा अनुसार पौषधोपवास करके, दूसरे दिन महात्माओं को आहार प्रदान करके, वे जो वहोरे उन वस्तुओं से ठाम चौविहार एकासना करने से संपन्न होता है। इस व्रत की आराधना करते हुए अनाभोग, सहसात्कार या लोभादि कषाय के अधीन होने से श्रावक को जिन-जिन दोषों की संभावना रहती है, उन्हें अब इस गाथा में बताते हैं। सच्चित्ते निक्खिवणे - सचित्तनिक्षेप । मुनिराज को दान देने योग्य वस्तु के उपर सचित्त जल, मिट्टी या अन्य सचित्त पदार्थ रख देना ‘सचित्तनिक्षेप' नामक प्रथम अतिचार है । जैसे कि कच्चे पानी में रखा हुआ आम का रस इत्यादि । 5 अतिथिसंविभागो नाम अतिथयः साधवः साध्व्यः श्रावकाः श्राविकाश्च एतेषु गृहमुपागतेषु भक्त्याभ्युत्थानासनदानपादप्रमार्जननमस्कारादिभिरर्चयित्वा यथाविभवशक्तिं अन्नपान-वस्त्रौषधालयादिप्रदानेन संविभागः कार्य इति । - श्रावकप्रज्ञप्तिसूत्र
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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