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________________ आठवाँ व्रत गाथा-२४ १८१ मंत - मंत्र - वशीकरण आदि के लिए उपयोग में आने वाले मंत्र। मूल - मूल - ज्वर आदि रोगों को दूर करने वाले झाड़ के मूल अथवा गर्भ मिटाने वाले या मारने वाले मूलकर्म। भेसज्जे- भैषज्य - प्राणी की प्रकृति का भ्रंश कराए ऐसी उत्तेजित क्रियाओं में उपयोगी अनेक वनस्पतियों के मिश्रण से बनाए हुए विविध चूर्ण आदि। दिन्ने दवाविए वा, पडिक्कमे देसि सव्वं - (ऊपर बताई हुई सब वस्तुएँ) स्वयं दी हो या अन्य किसी से दिलवाई हों उसके संबंध में जो कोई पाप लगा हो तो उसका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। _ 'ऊपर बताई हुई सब वस्तुएँ हिंसा का कारण बनती हैं। अत: ऐसी वस्तुएँ किसी को देनी भी नहीं चाहिए और न किसी से दिलवानी चाहिए । फिर भी दाक्षिण्यता (सभ्यता-विवेक) आदि कारणों को छोड़कर लज्जा, भय या लोकप्रिय बनने की वृत्ति से यदि मैने हिंसक साधन किसी को दिए हों या दिलवाए हों तो वह मैंने गलत किया है । उससे जो भी हिंसा होगी, उसमें मैं नाहक निमित्त बना हूँ । ऐसे दोषों की मैं निन्दा करता हूँ, पुनः ऐसा न हो वह संकल्प करता हूँ। इस प्रकार श्रावक हिंस्रप्रदान नामक अनर्थदंड विरमण व्रत के अतिचारों का प्रतिक्रमण करता है । जिज्ञासा : श्रावक को चाकू, छुरी, घंटी आदि वस्तुएँ गृह उपयोग के लिए रखनी ही पड़ती हैं तो फिर घर में रही हुई वस्तु को कोई मांगे तो श्रावक उसे दे या ना दे ? तृप्ति : अपने उपयोग के लिए घर में रखी हुई घंटी, चाकू आदि हिंसक सामग्री श्रावक आगे हो के न दे। परंतु सामने वाला व्यक्ति मांगे तो दाक्षिण्य याने कि विवेक या सभ्यता के कारण देनी पड़े तो श्रावक ना भी नहीं कह सकता। इसीलिए ही व्रत लेते समय वह उतनी छूट रखता है कि कभी दाक्षिण्यता से देनी पड़े तो छूट, अन्यथा नियम। ऐसी वस्तु देनी पड़े तब भी यदि सामने वाला व्यक्ति समझ सके तो त्रस आदि जीवों की हिंसा न हो इस तरीके से उपयोग करने का सूचन अवश्य करना चाहिए ।
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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