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________________ १२२ वंदित्तु सूत्र 'तत्प्रतिरूप' नामक तीसरा अतिचार गिना जाता है, क्योंकि इस तरीके से सामान्य व्यक्ति को ठगा जाता है। ऐसे अनैतिक मार्ग से कमाया हुआ धन चोरी का धन माना जाता है। ऐसा धन जीवन में दुःख, अशांति, उद्वेग के साथ नैतिक अध:पतन के अलावा कुछ भी नहीं देता। विरूद्धगमणे अ - राज्य विरूद्ध आचरण में। स्वयं जिस राज्य या देश में रहते हो, उसके शत्रु राज्य में, अपने देश के राजा की आज्ञा बिना व्यापार के लिए जाना या राजा की आज्ञा या कानून का उल्लंघन करना या राज्य प्रतिबंधित वस्तुओं का व्यापार करना, राज्य द्वारा निर्देशित कर नहीं भरना वगैरह कार्य करने से राष्ट्र द्रोह होता है। राज्य संबंधी ऐसी चोरी इस व्रत विषयक चौथा अतिचार है। कूडतुल-कूडमाणे - गलत तोल, गलत माप। अनाज वगैरह का वजन जिससे करते है ऐसे किलो आदि के बाट को तोल कहते है एवं कपड़ा वगैरह जिससे मापे जाते हों उसे माप कहते हैं। व्यापार करते समय जो व्यक्ति तोल-माप के गलत साधन को रखता है, वस्तु लेने के समय ज्यादा ले ले और देने के समय कम दे, तो ऐसे प्रसंगो में पर वंचना (ठगाई) होती है और अन्य का अहित होता है। ऐसे साधनों का उपयोग कर अनधिकृत अधिक लेने से और कम देने से इस व्रत में अतिचार लगते हैं। इन पाँचों अतिचारों के उपलक्षण से जिस किसी प्रवृत्ति के कारण अन्य का अहित होता है, अनधिकृत धन घर में आता है वैसी सर्व प्रवृत्तियों को अतिचार स्वरूप समझ लेना चाहिए क्योंकि ऐसी सर्व प्रवृत्तियाँ व्रत को दूषित करती हैं। पडिक्कमे देसि सव्वं - तीसरे व्रत के विषय में दिनभर में जो कोई भी अतिचार लगा हो उन सबका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। 'तीसरे व्रत के विषय में बिना सोचे-समझे, मेरे द्वारा जो किसी अतिचार का आचरण हुआ हो तो उन सबसे मैं वापस लौटता हूँ, उनका प्रतिक्रमण करता हूँ। जिस लोभ वृत्ति के कारण ऐसे अतिचार का सेवन किया है उससे निवृत्त होने के लिए अंत:करणपूर्वक उसकी निन्दा एवं गर्दा करता हूँ एवं ऐसा ना हो जाए
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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