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________________ वंदित्तु सूत्र का भी विकथा के नाम से उल्लेख किया है। मानव जीवन में आनंद-प्रमोद के बहुत सारे स्थान होने पर भी उन सब में से मानव के लिए विकथा एक अति रसप्रद स्थान रहा है। उसमें लीन होकर मानव कितना समय व्यर्थ गँवा देता है, उसका उसे भान भी नहीं रहता। और तो और इन विकथाओं में अपने होश खोकर जीव इन कथाओं द्वारा अपना या अन्य का किस प्रकार नुकसान होता है वह भी सोच नहीं सकता। निन्दा, अभ्याख्यान, असत्य आदि पाप भी इन विकथाओं के कारण लगते हैं। ९६ ५) निद्रा : जरूरत से ज्यादा सोना 'निद्रा' नामक प्रमाद है। निद्रा में सुख मानने वाला घोर निद्रा के कारण व्रत का उपयोग चूक जाता हैं। ये पाँच प्रमाद तो प्रमाद हैं ही, परंतु इनके अतिरिक्त व्रतपालन में लापरवाही, शक्ति होते हुए भी व्रत का अस्वीकार, स्वीकार के बाद शुद्ध पालन के लिए प्रयत्न का अभाव, शुद्ध पालन करते हुए लक्ष्य के साथ संबंध न होना तथा लक्ष्य की प्रतीति होते हुए भी प्रगति कितनी हुई इस विचार का अभाव, ये सब भी प्रमाद ही कहलाते हैं। आत्मा के लिए प्रमाद अत्यन्त अहितकारी है । प्रमाद के वश पडे हुए जीव का निश्चित पतन होता है। प्रमाद के कारण चौदह पूर्वधर भी निगोद में गए हैं। इस प्रमाद के अधीन होने से अप्रशस्त - अशुभ भाव उत्पन्न होते हैं, जो व्रत मर्यादा का उल्लंघन करवाते हैं। व्रतधारी श्रावक को अपने जीवन में प्रमाद प्रवेश न हो, उसके लिए अति सावधान रहना चाहिए। यहाँ यह भी ख्याल रखने योग्य है कि प्रमाद के वश होकर जो वध आदि होते हैं वे व्रत को दूषित करते हैं पर प्रमाद बिना, जयणा के भाव पूर्वक प्रभुभक्ति, साधर्मिक भक्ति आदि आत्महितकारी कार्यों में जो हिंसा आदि होती है उससे व्रत दूषित नहीं होता । व्रतपालन का फल : अहिंसा का पालन करने से जो फायदा होता है एवं उसका पालन न करने से जो नुकसान होता है, उसका विचार कर, श्रावक को अत्यन्त जागृत रहकर इन
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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