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________________ चारित्राचार गाथा-८ ४. स्थूल मैथुन विरमण व्रत ५. परिग्रह परिमाण व्रत निम्नांकित तीन प्रकार के हैं - ६. दिगुपरिमाण व्रत : ८५ : परिग्रह वृत्ति पर काबू रखकर परिग्रह का प्रमाण निश्चित करना, उसकी एक मर्यादा बाँधना । गुणव्वयाणं च तिण्हमइआरे : तीन गुणव्रतों के अतिचारों का । श्रावक के लिए पाँच अणुव्रत पाँच मूल व्रतों के समान हैं। इन मूल व्रतों को गुण करने वाले अर्थात् उनकी पुष्टि करने वाले व्रतों को गुणवत कहते हैं। गुणव्रत ७. भोगोपभोग विरमण व्रत ८. अनर्थदंड विरमण व्रत स्वस्त्री / स्वपुरुष में संतोष एवं परस्त्रीगमन परपुरुषगमन का त्याग करना । : हरेक दिशा में निश्चित मर्यादा से अधिक नहीं जाना। : भोग-उपभोग की मर्यादा बाँधना। : कोई भी विशिष्ट कारण के बिना अर्थात् जीवन जीने के लिए ज़रूरी न हो वैसे कारण बिना आत्मा दंडित हो, आत्मा दुःखी हो वैसा कार्य न करने का संकल्प करना । सिक्खाणं च चउण्हं (अइआरे) - चार प्रकार के शिक्षाव्रतों के (अतिचारों का) । जिन व्रतों के पालन से समता आदि गुणों का तथा सर्वविरति रूप संयम जीवन का शिक्षण मिले, उन्हें शिक्षाव्रत कहते हैं अथवा गुण वृद्धि के लिए जिनका बारंबार अभ्यास करना है उन्हें शिक्षाव्रत कहते हैं। उसके चार प्रकार निम्नोक्त हैं: ९. सामायिक व्रत : सर्व पाप व्यापारों का त्याग करके दो घड़ी तक समता भाव में रहने की प्रतिज्ञा को सामायिक कहते हैं । 'एक वर्ष में कम से कम इतनी सामायिक करूँगा ।' ऐसा संकल्प, 'सामायिक व्रत' नाम का प्रथम शिक्षाव्रत है।
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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