SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जयवीयराय सूत्र (प्रार्थना सूत्र) “हे वीतराग ! आपके सामर्थ्य से मेरे पुण्य का उदय हो, जिससे मुझे सुगुरु की प्राप्ति हो। हे देवाधिदेव ! आपके प्रभाव से मेरे मानादि कषाय मंद हों । जिससे प्राप्त हुए सुगुरु के साथ मेरा योग, सफल बने । उनके प्रति मेरा नम्रता भरा विनयपूर्ण व्यवहार हो। उनके प्रति मेरी श्रद्धा और समर्पण का भाव दिन-प्रतिदिन बढ़े।" हृदय के सद्भाव पूर्वक की गई यह प्रार्थना अमुक प्रकार के कर्म का हास करवाकर, आत्मा को लघुकर्मी बनाकर अंत में तीर्थंकर जैसे गुरु के साथ सुयोग करवाती है । ऐसे सुगुरु के सुयोग से अनुभव ज्ञान की प्राप्ति होती है, भूलों का एहसास होता है, अहंकार का नाश होता है और सुंदर जीवन की सतत प्रेरणा मिलती रहती है । शुभ गुरु का योग होने के बाद भी उनके वचन का पालन करना अत्यंत दुष्कर है और उनके वचन के पालन के बिना दुष्कर संसार सागर को तैरना सम्भव नहीं है। इसलिए साधक अब परमात्मा तद्वचन-सेवना रुप आठवीं माँग करता है । तव्वयणसेवणा - सेवन करना अर्थात् चारित्रसंपन्न सुगुरु के वचनों का अनुसरण करना । ___ “हे वीतराग ! मुझे आपके प्रभाव से सद्गुरु भगवंतों के वचनों का, उनकी आज्ञा का पालन करने का सामर्थ्य प्राप्त हो !" । विशिष्ट चारित्रसंपन्न आत्माएँ सत्यव्रत से युक्त होती हैं, इसलिए वे कभी असत्य नहीं बोलती हैं, तथा करुणायुक्त होने से वे कभी किसी का अहित हो वैसा सत्य भी नहीं बोलते। ऐसे महापुरुष के वचन की उपासना उल्लसित हृदय से हो तो ही आत्मकल्याण होता है, ऐसा मुमुक्षु समझते हैं । इसीलिए वे सदा गुरु के वचन की चाहना करते है, गुरु का आदेश होते ही अपना अहोभाग्य मानते हैं। भूखे को भोजन की तरह गुरु का अनुशासन
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy