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________________ २३४ सूत्र संवेदना उसी तरह करण-करावण एवं अनुमोदना के भी सात 2 प्रकार होते हैं । सात को सात से गुणा करने पर ४९ प्रकार होते हैं । इन ४९ को भूतभविष्य एवं वर्तमान कालरूप तीन काल के साथ गुणा करने से १४७ प्रकार होते हैं । इन १४७ प्रकारों में से हमें किन प्रकारों का पच्चक्खाण करना चाहिए, इसका बोध हो, तो ही सामायिक की प्रतिज्ञा शुद्धरूप से पाली जा सकती है । इसलिए सामायिक करनेवाले को सर्वप्रथम गुरु भगवंत से इन १४७ प्रकारों का ज्ञान पाना जरूरी है । १४७ प्रकारों में से मैं मन-वचन-काया से वर्तमान में तथा भविष्य की ४८ मिनिट तक सावध व्यापार नहीं करूँगा, नहीं करवाऊँगा एवं भूतकाल के सावध व्यापारों का अनुमोदन भी नहीं करूँगा । श्रावक इन शब्दों द्वारा इस प्रकार की प्रतिज्ञा ग्रहण करता है । मुनि भगवंत 'तिविहं तिविहेणं' शब्द बोलकर मन-वचन-काया से सावध व्यापार नहीं करूँगा, नहीं करवाऊँगा एवं अनुमोदन भी नहीं करूँगा ऐसी जीवन पर्यन्त की प्रतिज्ञा ग्रहण करते हैं । साधु भगवंत के लिए मन-वचनकाया के करण, करावण एवं अनुमोदन के साथ तथा भूत, भविष्य एवं वर्तमान के साथ गुणा करने से २७ प्रकार (३४३४३) होते हैं । मुनि भगवंत इन २७ प्रकारों का स्मरण करके वर्तमान एवं भविष्य संबंधी मन-वचनकाया से पाप करूँगा नहीं, करवाऊँगा नहीं एवं करनेवाले की अनुमोदना नहीं करूँगा तथा भूतकाल के पापों की अनुमोदना नहीं करूँगा, ऐसी प्रतिज्ञा ग्रहण करते हैं। 12. १. नहीं करूँगा। २. नहीं करवाऊँगा। ३. करनेवाला हुए की अनुमोदना नहीं करूँगा । ४. नही करूँगा, नहीं करवाऊँगा ।। ५. नहीं करूँगा, करनेवाले की अनुमोदना नहीं करूँगा । ६. करवाऊँगा नहीं, करनेवाले की अनुमोदना नहीं करूँगा। ७. करूँगा नहीं, करवाऊँगा नहीं, करनेवाले की अनुमोदना नहीं करूँगा।
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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