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________________ करेमि भंते सूत्र परन्तु जो लोग स्वयं इन्द्रियों के वश में होते है, वे दुःखी एवं अशुद्ध होते हैं । इसलिए, कल्याणकारी अनुष्ठानों में वैसे लोगों को आमंत्रण नहीं दिया जाता । २२३ २. भवांत एवं भवंत- जिन्होंने भव का अंत किया है एवं जो सातों भयों से संपूर्ण मुक्त हैं, वैसे अरिहंत' भगवंतों को इस शब्द से याद करना है । * भव निस्तार की इच्छावाला एवं भय से मुक्त होने की आकांक्षावाला साधक ऐसे अरिहंत परमात्मा को आमंत्रण देकर कहता है, 'हे भवांत ! मैं सामायिक करता हूँ । मेरी यह सामायिक की क्रिया भव एवं भय का नाश करनेवाली बने, इसमें आप भी सहायता करें ।' 1 ३. भंते - भंते शब्द का अर्थ आत्मा भी होता है । इस पद से आत्मा' को भी आमंत्रण है । भंते - हे आत्मन् ! मैं अब सभी अविरति की क्रिया का त्याग कर सामायिक के उपयोग वाला बनता हूँ । तुम भी मेरी इस क्रिया में सविशेष सहायक बनना । इस प्रकार 'करेमि भंते' शब्द द्वारा देव, गुरु एवं अपनी आत्मा को आमंत्रित कर मोक्षार्थी आत्मा सामायिक करता है । देव, गुरु एवं आत्मा की साक्षी से सामायिक करने से व्रत में स्थिरता आती है । देव- गुरु मेरे समक्ष हैं ऐसी वासना से लज्जा, भयादि के कारण भी अतिचारों का सेवन करते हुए अटक सकते हैं । करेमि भंते शब्द बोलते ही अरिहंत भगवंत, गुरु भगवंत एवं मेरी आत्मा मेरे सामने हैं । मैं उन्हें परतंत्र होकर उनकी आज्ञा को स्वीकार कर वर्तमान में मोक्षमार्ग के अनुकूल जो समता का परिणाम है, उसके लिए प्रयत्न करता हूँ, ऐसा भाव प्रगट करना है । 2. वि. आ. भा. भा. २ गाथा ३४७२ 3. भंते शब्द का इसके अलावा भ्राजन्त भ्रांत - भजन्त - भान्त वगैरह अर्थ भी हैं । परन्तु यहाँ विस्तार बढ़ने से नहीं लिया है । विशेष जिज्ञासु वि. आ.भा.भा. २ गाथा ३४३९ से ३४७६ देख लें। 4. वि. आ.भा.भा. २ गाथा ३४७०
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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