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________________ लोगरस सूत्र सूत्र परिचय : लोगस्स सूत्र में मुख्यतया भरतक्षेत्र के इस अवसर्पिणी कालीन चौबीस तीर्थंकरों की स्तवना की गई है, इसलिए इसे 'चतुर्विंशति स्तव सूत्र' भी कहा जाता है । ऋषभादि चौबीस तीर्थंकरों ने इस काल में तीर्थ की स्थापना करके हमारे ऊपर महान उपकार किया है, इसलिए वे अपने आसन्न (समीप होने से विशेष) उपकारी हैं । इस सूत्र में नामोल्लेखपूर्वक उनका कीर्तन किया गया है, इसलिए इस सूत्र को 'नामस्तव सूत्र' भी कहा जाता है । अरिहंत के अनंतज्ञानादि गुणों की स्मृति होने पर, जब अरिहंत परमात्मा के प्रति हृदय में अहोभाव और आदरभाव प्रकट होता है, अगर इस आदर के साथ अरिहंत का नाम स्मरण किया जाए, उनकी मूर्ति की पूजा की जाए अथवा परमात्मा की भिन्न-भिन्न अवस्था की भक्ति की जाए, तो उस नामस्मरणादि से पुण्यबंध और कर्मनिर्जरा होती है । ऐसा नामस्मरणादि परंपरा से परमपद की प्राप्ति का कारण बनता है । इस सूत्र में अरिहंत का नाम स्मरण करने से पहले, प्रथम गाथा में भाव तीर्थंकर' का स्वरूप बताया गया है । भावजिन' का चिंतन करते ही 1. जैन दर्शन में किसी भी पदार्थ को स्पष्ट रीति से समझने के लिए चार निक्षेपों का वर्णन जरूरी है । विश्व की प्रत्येक चीज के कम से कम चार निक्षेप होते हैं : नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव । 'जिन' के भी चार निक्षेप होते हैं - नामजिन, स्थापनाजिन, द्रव्यजिन एवं भावजिन । जिनेश्वर के नाम को नामजिन कहा जाता है, जिनेश्वर की मूर्ति को स्थापनाजिन
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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