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________________ १५० सूत्र संवेदना हो, परन्तु जीवहिंसा न हो जाए, ऐसी यतना भी न रखी हो, तो जीवों को बचाने का प्रयत्न न करने रूप लापरवाही का भाव भी हिंसा स्वरूप ही माना जाता है । इसलिए यह सूत्र बोलते हुए मात्र जीवहिंसारूप दोषों का ही नहीं, परन्तु जहाँ - जहाँ लापरवाही या अयतना का भाव प्रवृत्त हुआ हो, उन सब का प्रतिक्रमण करना है । इस प्रतिक्रमण को सफल बनाने के लिए याद रखना चाहिए कि, जितने अशुभ या क्रूर भाव से विराधना की हो, उससे अधिक शुभ भाव या करुणा के भाव ये शब्द बोलते हुए हृदय में उत्पन्न होने चाहिए क्योंकि, तब ही वास्तविक अर्थ में क्षमापना हो सकती है एवं दुष्कृत्य से बंधे हुए पाप का नाश हो सकता है । इन दस प्रकार की विराधनाओं के प्रकार बताए हैं उनसे मन-वचनकाया से या अन्य किसी भी तरीके से किसी भी जीव को वाणी द्वारा, व्यवहार द्वारा या मलिन भावों द्वारा दुःख पहुँचाया हो, तो उन सभी प्रकार की विराधनाओं को इन शब्दों द्वारा याद करके क्षमापना माँगनी चाहिए । यहाँ विराधना के प्रकार बताने वाली साँतवीं विराधना संपदा पूरी हुई । तस्स मिच्छा मि दुक्कडं : इन विराधना संबंधी मेरा दुष्कृत मिथ्या हो ! मिच्छा मि दुक्कडं शब्द का एक - एक अक्षर पाप के संस्कारों का नाश करने के लिए मंत्र तुल्य है । मार्ग में गमनागमन में या संपूर्ण जीवनपथ में कोई भी भूल हुई हो, किसी के साथ अभाव या दुर्भाव हुआ हो, किसी जीव को पीड़ा उत्पन्न की हो, किसी के प्राणों का नाश कीया हो या अनजाने में किसी के प्राणों का नाश हुआ हो, किसी को मरणांत पीडा उत्पन्न की हो, तो उन सब क्रियाओं की इन शब्दों द्वारा माफी मांगनी होती है । इतना खास ध्यान में रखने योग्य है कि मात्र पूर्वकृत दोष या उस भूल का ही मिच्छा मि दुक्कडं नहीं देना है, परंतु भूल करवानेवाले कुसंस्कारों का भी नाश करना है । हृदय में पाप के प्रति ऐसी घृणा उत्पन्न करनी है कि पुनः ऐसी भूल ही न हो । शास्त्र में कहा गया है कि, जिस भाव से भूल हुई हो,
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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