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________________ सूत्र संवेदना स्व-पर दुःख का कारण बनती है, तो उनके आचार स्व-पर सुख का कारण बनते हैं । ऐसे गुरु भगवंतों को हृदयस्थ करके मैं भी अपनी प्रवृत्ति का परिवर्तन करना चाहता हूँ ।” पंच समिओ ति-गुत्तो : (गुरु भगवंत) पाँच समिति और तीन गुप्ति वाले होते हैं । समिति याने सम्यक् प्रवृत्ति करनी एवं गुप्ति याने मन-वचन-काया के योगों को आत्म भाव में रखना । समिति प्रवृत्ति प्रधान है एवं गुप्ति निवृत्ति प्रधान है । पाँच समितिओं का स्वरूप : १. ईर्यासमिति : ईर्या=चर्या, सम्यग् प्रकार से चलने की क्रिया । कारण के बिना मुनि को चलने का निषेध है । ऐसा होते हुए भी कारण उपस्थित होने पर जब मुनि को चलने का प्रसंग आए, तब जीवों की रक्षा के लिए सूर्य की किरणों से एवं लोगों के आने-जाने की क्रिया से अचित्त हुई भूमि पर त्रस जीवों की हिंसा से बचने के लिए साढ़े तीन हाथ भूमि को देखकर चलना, ईर्यासमिति है। उत्सर्ग मार्ग से याने "मुख्यतया मुनि को कायगुप्ति में रहना है, कायगुप्ति के साधक मुनि सदा ज्ञान-ध्यान में मग्न होते हैं, कारण के बिना वे हाथ-पैर हिलाने की क्रिया भी नहीं करते, फिर भी नीचे बताए हुए "चार कारणों से मुनि को चलने की भगवान ने अनुज्ञा दी है । १. जिनवंदन : गुण प्राप्ति का प्रयत्न गुणवान के दर्शन-स्मरण से होता है, इसीलिए संपूर्ण शुद्ध एवं पूर्ण गुणयुक्त अपने स्वरूप की प्राप्ति के लिए मुनि जिनमंदिर जाते हैं । 10. कायगुप्ति उत्सगैनोनी, प्रथम समिति अपवाद - पू. देवचंद्रजी की अष्टप्रवचन की सज्झाय । 11. मुनि उठे वसहि थकीजी पामी कारण चार, जिनवंदन ग्रामांतरेजी, के आहार निहार. मुनीश्वर इर्या समिति संभाल -
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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