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________________ काल का स्वरूप अन्तर्मुहूर्त (तीन प्रकार) :1. जघन्य अन्तर्मुहूर्त :- 2 से 9 समय का काल । 2. मध्यम अन्तर्मुहूर्त :- 10 समय से मुहूर्त में दो समय शेष रहे वहाँ तक का काल। 3. उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त :- मुहूर्त में मात्र एक समय शेष रहे वैसा काल। प्रश्न : कालचक्र किसे कहते हैं ? प्रत्येक कालचक्र के 10-10 कोटाकोटि सागरोपम प्रमाण अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी नामक दो समान भाग होते हैं। जिस काल में सुख, आयुष्य, शरीर, वर्ण आदि वस्तुओं का अवसर्पण अर्थात् उनकी क्रमश: हानि होती है, उसे अवसर्पिणी काल और जिसमें उक्त वस्तुओं का उत्सर्पण अर्थात् क्रमश: वृद्धि होती है उसे उसर्पिणी काल कहते हैं। सामान्य भाषा में हम उसे गिरता और चढ़ता काल कह सकते हैं। अवसर्पिणी के बाद उत्सर्पिणी और उत्सर्पिणी के बाद अवसर्पिणी, इस तरह यह क्रम चक्र की भाँति ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर जाने वाला होने से उसका 'कालचक्र' नाम सार्थक है। का कालचक्र 22.. पहला सुषम सुषमा आरा 4 को.को. सागरोपम युगलिक जीवन दूसरा सुषम आरा 3 को.को. सागरोपम ' युगलिक जीवन तीसरा सुषम दूषम आरा 4 2 को.को. सागरोपम - युगलिक जीवन पीपहले तीर्थंकर का जन्म का चौथा दूषम सुषम आरा 1 को.को. सागरोपम (42000 वर्ष कम) 23 तीर्थंकर का जन्म - पांचवा दूषम आरा 21000 वर्ष छठा दूषम दूषम आरा 21000 वर्ष (जैन धर्म का अभाव) 87
SR No.006119
Book TitleJain Tattva Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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