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________________ देवद्रव्य के सुयोग्य आज्ञा अनुसार वहीवट के लाभ देवद्रव्य की अपनी मर्जी अनुसार वहीवट के नुकसान * धंधे में बांधे हुए पापों को धोने का अवसर * परमात्मा की आज्ञा का भंग * संघ का और दाता का विश्वासघात * बुद्धि-प्रज्ञा और जानकारी का सदुपयोग * विराधना-मिथ्यात्व आदि के महादोष * झुठी परंपरा चालु होती है * अनेक गुरुभगवंतों का परिचय * लोक में निंदा, प्रतिष्ठा खंडित होना * अनेक संघो-तीर्थों की मुलाकात-दर्शन का लाभ * राजकीय कार्यवाही में नुकसान होना * तीर्थंकर नामर्म बंध द्वारा आत्मशुद्धि * पुण्य की समाप्ति * आत्मविकास अटकजाना * प्रभावना-रक्षा-आराधना के प्रसंग में जवाबदारी पूर्वक का योगदान * सीदाते हुए क्षेत्र ज्यादा सीदाए * द्रव्यों के सुयोग्य दान की भावना उत्पन्न करने का लाभ * भवांतर में जैन धर्म की प्राप्ति दुर्लभ होना * सद्गति और मुक्ति सुनिश्चित * दुर्गति एवं संसार परिभ्रमण सुनिश्चित जैन शासन की स्थावरमुडी जैसे देवद्रव्य का भक्षण या उपेक्षा जानबुझकर या अनजान से भी हो तो भयंकर परिणाम इसी भव में या परभव में अवश्य भुगतने पडते है। संघ के आराधक-दाताओं को नम्र अपील श्री संघ के द्रव्य के वहीवटकर्ताओं को नम्र अपील जिनभक्ति संबंधी, स्वप्न की उछामणी या रथयात्रा इत्यादी अपने धंधे की बकाया राशी की वसुलात में विलंब ज्यादा चढावे की बकाया राशी बाकी तो नहीं है ना... ?? अगर नुकसान नहीं करेगा... जबकी धर्मद्रव्यकी बकाया राशी की बाकी है तो जल्द से जल्द भर दिजिए! वसुलात में विलंब आपत्तिकी परंपरा सर्जती है.. शास्त्र कहते है की कर्मसत्ता को आपका एड्रेस ढुंढने में जरा भी देर नहीं लगेगी - 71
SR No.006119
Book TitleJain Tattva Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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