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________________ 10. माता-पिता उपकार A. माता-पिता के चरण स्पर्श करना बालको ! प्रात: जगने पर आठ नवकार और हाथ में सिद्धशिला की आकृति में तीर्थंकरों के भाव से दर्शन एवं आत्म चिंतन करने के बाद बिस्तर (पलंग) से नीचे उतर कर अपने सबसे निकट के उपकारी माता-पिता के चरणों को आदरपूर्वक स्पर्श करना चाहिए, उनको नमस्कार करना चाहिए और उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। माता-पिता का अपने ऊपर अत्यन्त उपकार है। उपकारी माता: जब से जीव माता के पेट में आता है, तब से उसका उपकार आरंभ हो जाता है क्योंकि माता को प्रत्येक बात का ध्यान रखना पडता है। खाने पीने व चलने इत्यादि में पूरी सजगता रखनी पडती है, वरना पेट में रहा हुआ अपना जीव विकृति वाला हो जाता है। माता - अपने सुख, सुविधा, इच्छाओं का त्याग करती है, अनेक कष्ट सहन करके आपको जन्म देती है, लालन-पालन करती है, जिससे आपके दो हाथ, दो पैर, दो आँख, नाक, गाल, फेफडे, पेट, सिर तथा सुंदर मुख इत्यादि सुरक्षित रहते है। यह सब माता के रक्षण के कारण ही है। पेट में रहे हुए बालक की रक्षा करती है माता । जन्म होने के पश्चात् भी बडा करती है माता । स्वयं गीले स्थान में सोकर, अपने संतान को सूखे स्थान में सुलाती है माता । बालक को स्तनपान करवा कर पोषण देती है माता । अच्छे पवित्र संस्कार देती है माता । औषधि इत्यादि का प्रबंध करती है माता । भगवान के दर्शन के लिए ले जाती है माता । उपकारी माता-पिता के छूते हुए पुत्र तथा पुत्री गुरु को वंदन करवाने ले जाती है माता। जीत नवकार मंत्र सुनाती है - सिखाती है माता। अतः माता उपकारी है। उपकारी पिताः पिताजी इन सभी बातों में सहायता करते है । व्यवहार धर्म का ज्ञान दिलवाते है पिता। सत्य बोलना, हितकारी बोलना, किसी को हानि हो ऐसा नहीं बोलना, किसी को लूटना नहीं। इन सबकी शिक्षा देते हैं पिता । ऐसे पिता का उपकार कैसे भूला जाए। उपकार का बदला: अपने जन्म के समय प्रसूति की भयंकर असह्य वेदना सहन करके जन्म देने वाली माता तथा बहुत परिश्रम करके अपना पालन पोषण करने वाले पिताजी का उपकार महान है। ऐसे उपकार का बदला चुकाने के लिए शास्त्र में बताया गया है कि 1) अपनी चमडी के जूते बनाकर पहनाएँ। 2) देव बनकर पूरी जिंदगी माता-पिता को कंधों पर रखकर फिरें 3) 32 भोजन तथा 33 पकवान आदि उत्तम 52
SR No.006119
Book TitleJain Tattva Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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