SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 28. संवर की करणी करना - सामायिक वगेरे करना । संवर यानि कर्म बंधन के कारणों की रोकथाम। 29. बोलने में सावधानी रखना - प्रिय, तथा सत्य बोलना । 30. छ: काय के जीवों के प्रति करुणा भाव रखना यानी उनके प्रति कठोर नहीं बनना । 31. धर्म परायण मनुष्य का संग करना । 32. इन्द्रियों पर काबू रखना । 33. चारित्र की भावना रखना, प्रतिदिन सोने से पहले श्रावक के करने योग्य कर्तव्य करने का मनोरथ करना । 34. संघ के प्रति बहुमान भाव रखना । 35. धार्मिक पुस्तके लिखाना तथा उनकी यथाशक्ति प्रचार करना । 36. जैन शासन की प्रभावना करना तथा जैन - शासन की प्रभावना हो, वैसा काम करना । ये श्रावक के 36 कर्तव्य हैं जो नित्य करने योग्य हैं । 9. भोजन विवेक A. रात्रिभोजन त्याग पूर्व के विषयों में हमने पढा कि सीज़न बदलते ही हवामान बदल जाते है। हवामान के परिवर्तन से भक्ष्य पदार्थ भी अभक्ष्य बन जाते है। इसी तरह दिन में भक्ष्य खाद्य पदार्थ रात के समय अभक्ष्यबेस्वाद बन जाते है। जैसे सूर्य की हाजरी में मानव के शरीर के टेम्प्रेचर का फर्क पड जाता है। जैसे वनस्पतियों पर सूर्यप्रकाश की असर होती है। वैसे ही सूर्य की हाजरी में भोजन सही-सलामत रहता है। सूर्यास्त के बाद पकाया हुआ भोजन विकृत हो जाता है। जैसे आकाश में आद्रा नक्षत्र लगने के बाद धरती पर आम का स्वाद अपने आप बदल जाता है वैसे ही सूर्यास्त होने के बाद रसोई का स्वाद अपने आप बदल जाता है। तदुपरांत सूर्यास्त बाद कितने ही सूक्ष्म जंतु चारों ओर उड़ना चालू कर देते है। ये सुक्ष्म जंतु फल्डलाइट के प्रकाश में भी आँखों से नहीं दिख सकते। जैसे पक्षीयों में दिन में उड़ने वाले और रात्रि में उडने वाले ये विभाग होते है, जैसे पशुओं में दिन में चरनेवाले और रात्रि में चरनेवाले ये दो विभाग होते वैसे ही सूक्ष्मजंतुओं में भी दिन में उड़ने वाले और रात मे उडने वाले ऐसे दो विभाग होते है। इन जंतुओं को हाँस्पीटल का स्टरलाइज़ड वातावरण भी नहीं रोक सकता। इसलिए डॉक्टर लोग भी मेज़र ऑपरेशन में डे-लाइट की अपेक्षा रखते है । रात्रि में चाहें कितनी ही फ्लडलाइट हो परंतु रात्रिचर सूक्ष्म किटाणुओं को देख नहीं सकते, उडते हुए रोक नहीं सकते, वे कीटाणु ऑपरेशन में खुल्ले भाग पर चोंटे तो ऑपरेशन फेल हो जाता है। इसलिए रात्रि में ऑपरेशन करना डॉक्टर भी टालते है। रात्रि में तैयार की हुई ताजी रसोई पर भी सैंकडो सूक्ष्म कीटाणु अपना अड्डा जमा देते है। भोजन करते वक्त ये सब पेट में जाते है। इसलिए रात्रिभोजन अयोग्य है। दिनभर परिश्रम से शरीर थका हुआ हो तब उसे विश्राम देने की 43
SR No.006119
Book TitleJain Tattva Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy