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________________ 6. अरिहंत भगवंतों में शासन की स्थापना करने की विशिष्ट पुण्याई होती है जबकि सिद्ध भगवंतों में पूर्व में ऐस पुण्य हो यह जरुरी नहीं । 7. विश्व के प्रत्येक जीवों के प्रति अपार वात्सल्य होने से अरिहंत भगवंतों का वर्ण सफेद होता है जबकि आठों कर्मों को जलाकर भस्म करने से सिद्ध भगवंतों का वर्ण लाल होता है। प्र : अरिहंत भगवंत बाद में सिद्ध बनते है तो सिद्ध भगवंत बाद में क्या बनते है ? उ : सिद्ध भगवंत सदा के लिए मोक्ष में ही रहते है। सिद्ध भगवंतों के कर्म नहीं होते इसलिए उन्हें जन्म लेना नहीं पडता और शरीर धारण नहीं करना पडता है। वे हमेशा सुख में रहते है। हमें भी सिद्ध भगवान बनना है । इसलिए हमें सभी सिद्ध भगवंतों को नमो सिद्धाणं कहकर नमस्कार करना चाहिए। प्र : अरिहंत भगवान और सिद्ध भगवान को समझने के लिए कोई दृष्टांत है ? उ: हाँ ! शास्त्र में सुंदर दृष्टांत से अरिहंत और सिद्ध भगवंत का परिचय दिया गया है। एक विशाल समुद्र छलक रहा है। अंदर लहरें और तरंगें उछल रही है। इस समुद्र को पार करने के लिए कई मुसाफिर स्टीमर जहाज में बैठे है। स्टीमर का कप्तान (चालक) रात के समय स्टीमर चलाता है उसकी नजर सतत ध्रुव तारे पर जा रही है। क्योंकि ध्रुव तारें को देखते-देखते कप्तान सही दिशा में स्टीमर को आगे बढ़ाता है और यात्रियों को जल्द ही उनके गंतव्य तक पहुँचाता है । यह संसार एक विशाल समुद्र है। और भव्य जीव है मुसाफिर । उन्हें पहुँचना है मोक्षनगर में । संसार समुद्र पार कराकर मोक्ष नगर में पहुँचाने वाला जहाज़ जिनशासन है। जिनशासन रुपी जहाज में बैठकर संसार समुद्र पार करके हमें मोक्षनगर में पहुँचना है। लेकिन जहाज़ को चलाने के लिए कप्तान तो चाहिए ना ? और वो कप्तान है अरिहंत भगवंत । और अरिहंत भगवंत रुपी कप्तान को दिशा दिखाने वाले ध्रुव के तारे है सिद्ध भगवंत । इस तरह अरिहंत भगवंत शासन की स्थापना करके हमें मोक्ष की ओर ले जाते है। वहीं सिद्ध भगवंत हमें निरंतर मोक्ष रुपी स्थान की दिशा बताते रहते है । मानो कि हमें कहते है कि हे भव्य जीवों ! तुम्हें इस मोक्ष तक आना है। प्रसिद्ध भगवंत कौन बन सकते है ? : मनुष्य गति में आया हुआ मानव यदि अपनी साधना द्वारा राग-द्वेष आदि अंतर शत्रुओं का नाश कर दें, आठों - आठ कर्मों को भस्म कर दें तो वह उसी भव में मोक्ष में जा सकता है और सिद्ध भगवंत बन. सकता है। मनुष्य गति के अलावा बाकी की तीन गतियों में से सीधे मोक्ष नहीं जाया जा सकता है। कई आत्मा पहले चार घातीकर्मों का क्षय करके केवलज्ञानी बनती है। वे भव्यजीवों को उपदेश देते हुए इस लोक में विचरण करते है। उस वक्त वे जिन या केवली के रुप में पहचाने जाते है। बाद में बाकी के चार अघाती कर्मों का भी क्षय करके मोक्ष में जाते है। उसके बाद वे सिद्ध भगवंत कहलाते है। 29
SR No.006119
Book TitleJain Tattva Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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