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________________ अदृश्य हो गया। म तत्पश्चात् केशव ने जल लेकर हंस के शरीर पर छिडकाव पानी छाँटने से हंस का शरीर रोगरहित बना । किया। जल हंस के शरीर पर गिरते ही जादूई असर दिखाई दिया और कुछ ही क्षणों में वह हंस रोगमुक्त हो गया। इतना ही नहीं, बल्कि स्वस्थ होकर वह खड हुआ। उसकी काया पहले जैसी विष रहित बन गई। यह बात समस्त नगर में विद्युत वेग से फैल गई और रोग से पीडित अनेक लोग वहाँ पर आ पहुँचे। इन सभी लोगों पर परोपकारी केशव ने अपने हाथ से स्पर्शित जल का छिडकाव किया और सभी को रोगमुक्त किया। माता-पिता के आनंद की सीमा न रही। नगर की जनता भी अत्यंत हर्षित हुई। सर्वत्र केशव की जय जयकार हुई और धर्म की महिमा का प्रसार हुआ। अनेक लोगों ने रात्रि भोजन के त्याग की प्रतिज्ञा अंगीकार की। धर्म के प्रत्यक्ष प्रभाव देखकर जनता धर्म के मार्ग पर मुडी। राजा केशव अपने सगे-स्नेहीजनों और माता-पिता को अपनी राजधानी साकेतपुर नगर में ले अया। ऐसे धर्मी राजा के राज्य में प्रजा आनंद प्रमोद करने लगी। राज्य में समृद्धि और प्रीत तो स्वत: ही चरणों श्रावक योग्य व्रतों को अंगीकार करके 2 राजा केशव अन्त में में लौटती है-ऐसा सभी को लगा। स्वर्ग लोक में सिधारा। राजा केशव ने अगणित आत्माओं को धर्म मार्ग पर चढाकर कल्याणकारी राज्य कैसा होता है, इसका सभी को परिचय दिया। चिरकाल तक राज्य ऋद्धि भोगकर श्रावक के व्रत गहण करके केशव यशस्वी, उज्जवल और धर्ममय जीवन जीकर स्वर्गलोक में सिधारा। रात्रिभोजन के त्याग की यह प्रभावशाली कथा हमें रात्रिभोजन के त्याग की प्रेरणा देती है, त्याग का माहात्म्य प्रदर्शित करती है साथ ही रात्रिभोजन से इस लोक में भी कैसे भयंकर दु:ख दर्द और कैसी घोर वेदनाओं का अनुभव करना पडता है, आदि वस्तु स्थिति प्रस्तुत करके हमें सुंदर सद्बोध दे जाती है। स इतनी सूक्ष्मता तो जैन शासन के सिवाय कहाँ जानने को मिल सकती है ? जिन लोगों को यह शासन मिला है, वे सचमुच महान् भाग्यशाली है, परंतु ऐसा उत्तमशासन प्राप्त होने के पश्चात् भी यदि ऐसे बडे पाप करते ही रहे तो ऐसे लोगों को कैसा कहा जाए ? अभी अपना यह मानव का अवतार है पशु का नहीं। पशु के अवतार में अपने रात दिन खाते रहते थे। इस भव में भी यही कुसंस्कार ? पशु का अवतार गया, लेकिन पशुता नहीं गई। अत: रात्रिभोजन के महापाप को समझकर आज से ही त्याग करने का संकल्प करना और द्रव्य भाव दोनों ही प्रकार के स्वास्थ्य से लाभान्वित बनना। (117
SR No.006119
Book TitleJain Tattva Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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