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________________ जैन तत्त्व दर्शन 3. शत्रुजय तीर्थ “शत्रुजय समो तीर्थ नहीं, ऋषभ समो नहीं देव” शत्रुजय नदी के तट पर बसा, युगान्तर में हमेशा विद्यमान रहने वाला शाश्वत तीर्थ, जिसका कणकण पुण्यशाली है, जिसके नाम स्मरण मात्र से रोम-रोम प्रफुल्लित हो उठते हैं। जिसके राजा आदेश्वर दादा के दर्शन से आत्मा धन्य हो उठती है, यही है वो भव्य महातीर्थ शत्रुजय। जिसके अनेकों बार जीर्णोद्धार इन्द्रों के हाथों हुए है। पिछला सोलहवां जिर्णोद्धार वि.सं.1587 वैशाख वदछट्ठ को करमाशाह द्वारा हुआ और इस अवसर्पिणी काल का अंतिम एवं सत्रहवां जिर्णोद्धार राजा विमलवाहन द्वारा होने की शास्त्रोक्ति है। यहीं एक ऐसा तीर्थ है जहां इस चौवीसी के 23 तीर्थंकरों ने पदार्पण किया है। युगादिदेव श्री आदिनाथ भगवान पूर्व नव्वाणु बार इस गिरिराज पर पधारे थे, उसी परंपरानुसार आज भी भारत के कोने कोने से श्रद्धालु यहां नव्वाणु एवं चातुर्मास हेतु आते है। फाल्गुन सुदी तेरस के दिन भावी तीर्थंकर श्री कृष्ण वासुदेव के पुत्र शाम्ब व प्रद्युम्न शत्रुजय गिरिराज के भाडवा डुंगर पर अनेक मुनियों के साथ मोक्ष 49
SR No.006117
Book TitleJain Tattva Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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