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________________ जैन तत्त्व दर्शन 10. माता-पिता का उपकार इस जगत के सर्व जीवों को प्रेम देने के लिए परमात्मा स्वयं पहुँच नही सकते, इसीलिए उन्होंने माता का सर्जन किया। भगवान का अवतार ऐसी ममतामयी माता का उपकार चुकाना तो क्या, बताना भी असम्भव है। माँ शब्द में कितनी मिठास है, कितनी ममता वप्यार है। नौ दिन तक अगर हमारे हाथ में एक छोटी सी पुस्तक रख दी जाय तो क्या हम प्रसन्नतापूर्वक इस भार को उठा सकते है ? नहीं ! परन्तु करुणामयी, वात्सल्यमयी माँ अपने पेट में नौ महीने तक प्रसन्नतापूर्वक हमारे भार को सहन करती है और इन दिनों माँ को कितनी कुर्बानियाँ देनी पडती है उसकी गिनती तो सिर्फ केवलज्ञानी ही कर सकते है। __ पिताजी घर में मस्तक समान है एवं माताजी घर में हृदय के समान है। A Father is the head of the house, and Mother is the heart of the house. सुबह उठ कर माता-पिता के पांव को छूकर अपने कार्य की शुरुआत करनी चाहिए। रात को सोने से पहले इनके पास बैठ कर प्रेम से दिन में किये हुए कार्यों के बारे में बातचीत करना, उनके साथ आनंद एवं ज्ञान चर्चा करना । टी.वी. व सेलफोन में मस्त होकर उपकारी माता-पिता को दुःखी मत करना । वे जो भी कहे उनकी बात मानना | माता-पिता की खुशी के लिये अगर हमें अपनी इच्छाओं को मारना पडे तो यह समझ कर अपनी इच्छा दबा दो कि इससे उनके उपकारों का एहसान का कुछ अंश मात्र ही सही, पर कर्ज चुकाने का यह अनमोल अवसर है। माता-पिता की खुशी के लिए श्री रामचन्द्रजी ने 14 साल का वनवास स्वीकारा | भगवान महावीर ने - माता पिता जब तक जीवित रहेंगे तब तक संयम ग्रहण नही करुंगा ऐसा महान अभिग्रह धारण किया। ऐसे कई विनयी सुपुत्र भारत के इतिहास में पाये जाते है।
SR No.006117
Book TitleJain Tattva Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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