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________________ से ही नौकर के रूप में काम कर रहा था। लेकिन वह सचमुच जयकेशी राजा का राजपुत्र था। आज उसने अपनी उच्च कुलीनता का विचार किया और सोचा, सेठ की सामग्री से पूजन करने से मुझे क्या लाभ होगा? मेरे पास अपने श्रम की पाँच कौड़ी की पूँजी है, उसी से ही मैं आज की भक्ति कर अपने जीवन को सफल कर लूँ। ऐसा निश्चय कर उसने मालन से पाँच कौड़ी के फूल माँगे । मालन ने 18 फूल चुन कर दिये। फूलों से भरा हुआ थाल लेकर नरवीर मंदिर में गया। प्रभु की नवागी पूजा बड़े उमंग के साथ की। जयणा से पुष्पों को प्रभु के अंग पर कलाकारी से रखकर अंगरचना की। इस प्रकार उसने शाम तक प्रभुभक्ति व ध्यान में दिन बिताया एवं अखंडित पुण्य कर्म का संचय किया। परिणामस्वरूप अपनी मृत्यु के पश्चात् वह राजा त्रिभुवन के यहाँ उसके पुत्र के रूप में जन्मा। राजा त्रिभुवनपाल और उसकी प्रजा आज बहुत ही आनंद मना रही थी। राज भवन में आज पुत्र जन्म की खुशियाँ मनाई जा रही थी। यह राजपुत्र का जीव, वही पूर्वजन्म के नरवीर (नौकर) की आत्मा थी। उस धर्मवीर बालक का नाम 'कुमारपाल' रखा गया। समय बीत रहा था। कुमार भी बड़े हो रहे थे। राजा सिद्धराज जयसिंह उसकी प्रगति और जीवन विकास के लिये बार-बार विघ्नरूप हुए। किन्तु मनुष्य के भाग्य में जो लिखा गया है, वह कभी मिट नहीं सकता। अपरिमित आपत्तियों को और कष्टों को सहते-सहते एक दिन कुमार पाल वि.सं. 1199 में राजा बने। पाँच कौड़ी के अठारह पुष्पों से उन्होंने जो पुण्य उपार्जन किया था, उसके प्रताप से वह इस भव में क्रमश: अठारह देशों के मालिक बने। इतनी अपरिमित राजसमृद्धि प्राप्त होने पर भी वे धर्म को कभी भूले नहीं। त्यागी गुरु महाराजों का सन्मान और जीवदया के प्रति दिलचस्पी उनके जीवन में अभिन्न अंग रही। वे अपने राज्य में घोड़े और हाथियों को भी कपड़े से छना हुआ पानी पीने को देते थे। अपनी राज्यसत्ता की सहायता से उन्होंने जितना जीवदया का जो प्रचार और प्रसार किया था, उतना महाराजा श्रेणिक भी कर नहीं पाए। इसी पर से उनका जीवदया के प्रति अनहद प्रेम प्रमाणित होता है। 50
SR No.006116
Book TitleJain Tattva Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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