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________________ [ १९ ] उपदेशथी जीव , अजीव , पुण्य , पाप , आश्रव , संवर, निर्जरा , बंध , मोक्ष रूप तत्वाधिगम थाय छे. तत्त्व- ज्ञान थवाथी स्वपरनो ।ववेक थायछे एटले एम समजे छे जे मारो आत्मा ज्ञान , र र्शन , चारित्र , वीर्यादि गुणोथी भरपूर छे अने बीजा पदार्थो आत्माथी व्यतिरिक्त (भिन्न ) छे के जेनो व्यवहार जड पुद्र लादि शब्दोथी करवामां आवेछे. जेटला दृश्य पदार्थो छे ते वधा पौद्गलिक छे, तेमां केटलाएक दृश्य गुणवाळा छतां चर्मचक्षुवाळा जीवो जोइ शकता नथी. दाखला तरीके परमाणु विगेरे असल दृश्य स्वभावी छे. जो तेम न होय तो परमाणुपुंजी बनेल अवयवी, प्रत्यक्ष थाय नहिं. जडना संबंधथी अत्मा तद्रूपताने कोइक अंशे पामेल छे. दृष्टान्त तरीके सुवर्ण द्रव्य जेम स्वच्छ छतां मृत्तिका (माटी) ना संयोगथी तद्प मालूम पडेछे. सुवर्ण उपरनो मृत्तिका रूप मेल दूर थवाथी जेम तेना स्वरूपर्नु भान आबाल गोपालने ते करावे छे, तेम आ मा उपरनो कर्मरूपी महा. मलीन मेल दूर थवाथी आत्मा , परमात्मानी दशा मेळवे छे. वर्तमान दशामां आत्मा स्फटिक रत्ननी उपमाने लायक छे. जेम स्फटिक रत्ननी सामे जेवा रंगानुं पुष्प राखशो, तेवो रंग स्फटिकमां मालूम पडशे, तेमज आप गो आ छद्मस्थोनो आत्मा जेवी सोबत
SR No.006110
Book TitleAtmonnati Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherShah Harakchand Bhurabhai
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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