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________________ ॥१११॥ 68066 ॐ ऋषभ - अजित - संभव - अभिनंदन - सुमति - पद्मप्रभ - सुपार्श्व - चन्द्रप्रभ - सुविधि - शीतल - श्रेयांस - वासुपूज्य - विमल - अनन्त - धर्म - शान्ति - कुंथु - अर - मल्लि - मुनिसुव्रत - नमि - नेमि - पार्श्व - वर्धमानान्ता जिनाः शान्ताः शान्तिकरा भवन्तु स्वाहा ॥४॥ ॐ मुनयो मुनिप्रवरा रिपु-विजय-दुर्भिक्ष - कान्तारेषु दुर्गमार्गेषु रक्षन्तु वो नित्यं स्वाहा ॥५॥ ॐ ह्रीं श्रीं धृति - मति -कीर्ति -कान्ति - बुद्धि -लक्ष्मी - मेधा - विद्यासाधन - प्रवेश - निवेशनेषु सुगृहीत - नामानो जयन्तु ते जिनेन्द्राः ॥६॥ ॐ रोहिणी - प्रज्ञप्ति - वज्रशृङ्खला - वज्राङ्कुशी - अप्रतिचक्रा - पुरुषदत्ता - काली - महाकाली - गौरी - गान्धारी - सर्वास्त्रामहाज्वाला - मानवी- वैरोट्या - अच्छुप्ता - मानसीमहामानसी षोडश विद्यादेव्यो रक्षन्तु वो नित्यं स्वाहा ॥७॥ ॐ आचार्योपाध्याय प्रभृति चातुर्वर्णस्य श्री श्रमणसङ्यस्य शान्तिर्भवतु तुष्टिर्भवतु पुष्टिर्भवतु ॥८॥ ॐ ग्रहाश्चन्द्रसूर्यागारकबुध बृहस्पति शुक्र शनैश्चरराहुकेतु सहिताः सलोकपालाः सोम - यम - वरुण कुबेरवासवादित्य - स्कन्द विनायकोपेता ये चान्येऽपि ग्राम - नगर - क्षेत्रदेवतादयस्ते सर्वे प्रीयन्तां प्रीयन्तां, अक्षीण - कोशकोष्ठागारा नरपतयश्च भवन्तु स्वाहा ॥९॥ ॥१११॥
SR No.006086
Book TitleGirnar Bhakti Triveni Sangam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirth Vikas Samiti
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size30 MB
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